लघुकथा/अच्छाई और बुराई

लघुकथा/अच्छाई और बुराई
मनोज धीमान।

वह अंधविश्वासी नहीं था। नास्तिक भी नहीं था। जहाँ लगता कि कोई अच्छा विचार सुनंने को मिल सकता है वहां बिना देरी किये पहुँच जाता। यही सोच कर आज सुबह वह सत्संग में आया था। सत्संग में बहुत पहुंचे हुए महात्मा आ रहे थे। सत्संग में उनका प्रवचन होना था। उसने इन महात्मा के बारे में बहुत सुन रखा था। महात्मा ने अपना प्रवचन शुरू किया। वह अच्छाई और बुराई के बारे में अपने विचार रख रहे थे। उन्होंने कहा अच्छाई और बुराई का चोली दामन का साथ है। इन दोनों का निवास हमारे मन मस्तिष्क में है। हर पल दोनों के बीच युद्ध चलता रहता है। कभी अच्छाई की जीत होती है। कभी पराजय। अंत किसी का नहीं होता। जैसे कभी दिन होता है कभी रात, कभी जन्म होता है कभी मृत्यु, कभी धूप खिलती है कभी छाँव ...। मनुष्य वही सफल होता है जो अच्छाई का पलड़ा इतना भारी कर देता है कि बुराई उसके सामने टिक नहीं पाती। अंत में उन्होंने कहा कि बुराई से नफ़रत करो बुरे इंसान से नहीं। कुछ ऐसा कीजिए कि बुरे इंसान में उसकी अच्छाईयों का पैमाना बढ़ जाये। बुराई की वजह से किसी बुरे इंसान को समाप्त भी कर दोगे तो भी बुराई का अंत नहीं होगा। बुराई फिर भी रहेगी, अच्छाई के साथ...। महात्मा के प्रवचन समाप्त होने पर वह घर पहुंचा और लॉन में जा कर बैठ गया। इतने में पत्नी चाय की प्याली ले आयी। साथ में अख़बार भी थमा गई। अख़बार खोला। उसका ध्यान मुख्य पृष्ठ की हैडलाइन पर अटक गया - "कश्मीर में सुरक्षा बलों की आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में 5 आतंकवादी ढेर"। उसके दिमाग में महात्मा का प्रवचन गूंजने लगा।
-मनोज धीमान।