समाचार विश्लेषण/हरियाणा प्रदेश कांग्रेस की बात

मुसाफिर रह गये क्या कुछ लोग?

समाचार विश्लेषण/हरियाणा प्रदेश कांग्रेस की बात
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
क्या हरियाणा प्रदेश काग्रेस का विवाद उदयभान को अध्यक्ष घोषित करने के बाद भी थमा नहीं ? क्या अभी कुछ लोग इसमें मुसाफिर की तरह रह रहे हैं और किसी दिन पता चलेगा कि वे किसी और दल तक की यात्रा तय कर चुके हैं ? क्या सोनिया गांधी का आदेश या फैसला उनके सिपहसालार व आईटी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष रणदीप सुरजेविला को भी पसंद नहीं आया ? राष्ट्रीय महासचिव और हरियाणा के पूर्व मंत्री रहे रणदीप सुरजेवाले ने कहा कि यदि कुलदीप बिश्नोई को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाता तो उनकी नज़र में एक अच्छा फैसला होता । कुलदीप बिश्नोई सुरजेवाला की नज़र में लायक व होनहार नेता हैं । इस बयान से एक बार फिर न केवल गुटबाजी की साफ झलक मिली बल्कि कांग्रेस हाईकमान के फैसले पर भी संदेह व्यक्त किया और वह भी उनके अपने करीबी सिपहसालार ने । क्या यही बात वे सीधे सोनिया गांधी से कह नहीं चुके होंगे ? फिर इसे सार्वजनिक करने की क्या जरूरत आन पड़ी ? सीधी सी बात कि आप हजम नहीं कर पाये यह फैसला और सार्वजनिक करने में कोई संकोच नहीं किया जबकि यह बात अंदर की है और बैठक में कही जाती तो शोभा देती ।
दूसरी ओर कुलदीप बिश्नोई भी शायराना अंदाज अपनाये हुए कहते हैं :
नये लोग होंगे , नयी बात होगी 
मै हर हाल में मुस्कुराता रहूंगा ।
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी ।
चरागों को आंखों में महफूज रखना 
तुम्हे मैं मिलूंगा जहां रात होगी ।
जहां वादियों में नये फूल आये 
हमारी तुम्हारी मुलाकात होगी ।
मुसाफिर हैं हम भी 
मुसाफिर हो तुम भी ,,,
अब इस शेर से समझ सकते हैं कि कुलदीप के दिल में कैसा तूफान चल रहा है और यह तूफान उन्हें एक मुसाफिर की तरह कांग्रेस से दूर ले जा सकता है । ऐसे संकेत भी मिल रहे हैं । मुसाफिर की अगली मंजिल कहां होगी - आप या भाजपा ? यही दो विकल्प बचे हैं क्योंकि हजकां का विलय तो कांग्रेस में कर चुके हैं ।भाजपा से भी सुषमा स्वराज ने एक बार गठबंधन करवाया था लेकिन सिरे न चढ़ पाया और न देर तक निभ सका । ऐसे ही बसपा से भी गठबंधन किया था जो जल्द ही टूट गया था । अब लगातार राजनीति में कुलदीप बिश्नोई एक मुसाफिर की तरह ही व्यवहार कर रहे है । न कांग्रेस में टिक रहे हैं और न ही गठबंधन का धर्म निभा पाते हैं । नयी राजनीतिक पार्टी बना कर भी देख चुके हैं । सबको साथ लेकर चलने और किसी एक के साथ चलने में की बजाय 'एकला चलो रे' में ज्यादा विश्वास रखते दिखाई देते हैं । इनके अगले कदम की इंतज़ार रहेगी लेकिन लगता है गुटबाजी का जो रोग कांग्रेस को लगा है , अभी उसका कोई इलाज नही मिल पाया है । हालांकि उदयभान कह रहे हैं कि कुलदीप बिश्नोई या अन्य नेताओं को मना लेंगे तो कहिए नहीं बल्कि यह काम कर डालिए एकदम से । विश्वास में लीजिए रूठे नेताओं को । विश्वास दिलाइए रूठे कांग्रेसजनों को कि पूरा सम्मान दिया जायेगा और आपको सेवाओं का पूरा पूरा लाभ पार्टी उठायेगी । यह विश्वास देना और बढ़ाते जाना बेहद जरूरी है लेकिन पहले प्रवक्ता को भी अपनी बात सोच समझ कर बोलनी चाहिए ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।