लघुकथा/आस्था/मनोज धीमान

लघुकथा/आस्था/मनोज धीमान
मनोज धीमान।

बड़ा ख़ौफ़नाक दृश्य था। ख़ूब अँधेरी चली। आंधी, तूफ़ान आया। बिजली चमकी। शहर की घनी आबादी में स्थित एक पुराने मंदिर के गुंबद पर बिजली गिरी। मंदिर की इमारत को थोड़ी-बहुत क्षति पहुँची। मगर कोई जानी नुक्सान ना हुआ। लोग श्रद्धाभाव से भगवान की प्रतिमा के सम्मुख खड़े धन्यवाद कर रहे थे। कह रहे थे - हे प्रभु, आज आपने ही हमें जीवनदान दिया है। आपकी वजह से ही हम बच पाए हैं। वरना तो हम सब मारे जाते।  
कुछ दिनों बाद।
दोबारा ख़ौफ़नाक दृश्य देखने को मिला। ख़ूब अँधेरी चली। आंधी, तूफ़ान आया। बिजली चमकी। शहर की घनी आबादी में स्थित पुराने मंदिर पर दोबारा बिजली गिरी। मगर इस बार बिजली ने भगवान की प्रतिमा को भी अपनी चपेट में ले लिया। प्रतिमा पूरी तरह से क्षतीग्रस्त हो चुकी थी। लोग श्रद्धाभाव से भगवान की क्षतीग्रस्त हो चुकी प्रतिमा को निहार रहे थे, कोटि कोटि धन्यवाद कर रहे थे। कह रहे थे - हे प्रभु, आज आपने फिर से हमें जीवनदान दिया है। वरना तो हम सब मारे जाते। आपने सारी विपदा अपने ऊपर लेकर हमें जीवनदान दिया है।