यात्राएं करती हैं आज़ाद : अनुराधा बेनीवाल

यात्राएँ हमें महसूस करा देती हैं कि एक दुनिया के भीतर कई दुनियां हैं-अनुराधा

यात्राएं करती हैं आज़ाद : अनुराधा बेनीवाल
पुस्तक लोकार्पण - लोग जो मुझमें रह गये

नई दिल्ली। पाठकप्रिय युवा लेखक और यायावर अनुराधा बेनीवाल ने कहा कि यात्राएं आपको आज़ाद करती हैं। वे आदमी  को उसकी बंधी-बंधाई जिंदगी के दायरों से बाहर नई अनदेखी अनजानी दुनिया से परिचित कराती है, जिससे आपकी दुनिया बड़ी होती है और आपका हौसला भी बढ़ता है, खुद पर भरोसा भी बढ़ता है।अनुराधा शुक्रवार शाम अपनी नई किताब ‘लोग जो मुझमें रह गए’ के लोकार्पण के मौके पर ये बातें कहीं।

इस मौके पर उनसे सुपरिचित लेखक आलोचक सुजाता और मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार ने खासतौर पर बातचीत की। एक सवाल के जवाब में अनुराधा ने कहा ,आजादी आदमी का जन्मसिद्ध अधिकार है। यह अपने आप और आसानी से मिलनी चाहिए। आजादी हासिल करने के लिए अगर जद्जोहद करनी पड़े तो यह अच्छी स्थिति नही कही जा सकती। लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के लिए लोगों को काफी मेहनत करनी पड़ती है,जदोजहद करनी पड़ती है यह वास्तविकता है।

उन्होंने आगे  कहा यात्राएं आपको आज़ाद करती हैं, वे आपको हदों को पार कर नई हदों तक पहुंचाती हैं ,आपके दायरे का विस्तार करती हैं,यात्रा का मतलब केवल एक जगह से दूसरी जगह जाना नही है। इसका मलतब उन लोगों, संस्कृतियों,रवायतों,मसलों को देखना –समझना और उनसे जुड़ना भी है ,जिनसे आप अब तक अनजान हैं।
 
अनुराधा ने बताया कि इसीलिए उन्होंने अपनी नई किताब में उन लोगों को  खासतौर पर जगह दी है जिनसे अपनी यायावरी के दौरान वे मिलीं और जिनकी जिंदगी के अनदेखे- अनजाने पहलुओं ने उनके दिल-दिमांग पर गहरी छाप छोड़ी। गौरतलब है कि ‘लोग जो मुझमें रह गए’ अनुराधा की दूसरी किताब है जो राजकमल प्रकाशन समूह के उपक्रम सार्थक से प्रकाशित हुई है।उनकी पहली किताब ‘आजादी मेरा ब्रांड’ भी यहीं से छपी थी,जिसने समकालीन साहित्य-जगत में खासी हलचल पैदा की थी।
 
कार्यक्रम में बातचीत के दौरान सुपरिचित लेखक आलोचक सुजाता ने कहा, ‘लोग जो मुझमें रह गए’ में  अनुराधा ने जगहों के साथ-साथ वहां मिले लोगों के बारे में भी लिखा है। वे  जिन जगहों से होकर गुजरी उन्हें शायद कोई भूल जाए पर उन जगहों पर जिन लोगों से वे मिली और जिनकी कहानियाँ उन्होंने दर्ज की उन्हें भूलना मुश्किल है।
 
उनके एक सवाल पर अनुराधा ने कहा, यात्राओं में हमेशा आपको लोग मिलते हैं लोगों के साथ उनकी कहानियाँ मिलती हैं। तो मेरे पास ऐसी तमाम कहानियाँ हैं, जिनमें से कुछ मेने इस किताब में दर्ज की हैं। इसके लिए मुझे शोर्ट स्टोरी का फॉर्मट अच्छा लगा। वैसे ये फिक्शन नही था सच बातें थी,इसलिए एकदम कहानी भी नही हैं जो फिक्शन में होता है। उन्होंने कहा, यात्राओं में आप देखते हैं तो सवाल उठता है कि किसके के लिए देखते हैं,अपने लिए या दूसरों के लिए कि वे जान सकें कि आपने ये –ये चीजें देखी हैं।
अनुराधा ने कहा, यात्राएँ हमें महसूस करा देती हैं कि एक दुनिया के भीतर कई दुनियां हैं और एक देश के भीतर कई देश हैं। किसी का रहन –सहन या खानपान अलग हो सकता है पर वास्तव में हम सब एक हैं। विविधिताओं पर विशिष्टताओं को स्वीकार करना चाहिए।
 
मीडियाककर्मी विश्लेषक विनीत कुमार ने कहा कि सुनना आजकल एक मुश्किल क्रिया है, लेकिन अनुराधा की किताब हमें सुनने के लिए विवश करती है। आजकल हमारा ज्यादातर कहा और लिखा शार्ट बन  जा रहा है।ऐसे में अनुराधा के लिखे यात्रा आख्यान में विश्वसनीयता हासिल करने की दुर्लभ क्षमता है,क्योंकि इसमें वह सब भी दर्ज है जो उन्होंने मन की आँखों से देखा और महसूस किया है।
 
इंडिया हैबिटैट सेंटर के गुलमोहर सभागार में  आयोजित इस कार्यक्रम मे श्रोताओं ने भी अनुराधा से  कई सवाल पूछे। इससे पहले सुपरिचित रंगकर्मी प्रियंका शर्मा ने ‘लोग जो मुझमें रह गए’ के एक अंश का पाठ किया।
कार्यक्रम में उपस्थित जनों का राजकमल प्रकाशन समूह के सीईओ आमोद महेश्वरी ने स्वागत किया। कार्यक्रम में राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी, संपादकीय निदेशक सत्यानन्द निरुपम विशेष रूप से उपस्थित थे।
 
कौन हैं अनुराधा बेनीवाल
 
अनुराधा बेनीवाल का जन्म हरियाणा के रोहतक ज़िले के खेड़ी महम गाँव में 1986 में हुआ। उनकी 12वीं तक की अनौपचारिक पढ़ाई घर में हुई। 15 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिता की विजेता रहीं। 16 वर्ष की आयु में विश्व शतरंज प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उसके बाद उन्होंने प्रतिस्पर्धी शतरंज खेल की दुनिया से ख़ुद को अलग कर लिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज से अंग्रेज़ी विषय में बी.ए. (ऑनर्स) करने के बाद एलएलबी की पढ़ाई की, फिर अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. भी किया। इस दौरान तमाम खेल-गतिविधियों से कई भूमिकाओं में जुड़ी रहीं। फ़िलहाल लन्दन में एक जानी-मानी शतरंज कोच हैं और रोहतक में लड़कियों के सर्वांगीण व्यक्तित्व-विकास के लिए ‘जियो बेटी’ नाम से एक स्वयंसेवी संस्था भी चला रही हैं। मिज़ाज से बैक-पैकर अनुराधा अपनी घुमक्कड़ी का आख्यान ‘यायावरी आवारगी’ नामक पुस्तक-शृंखला में लिख रही हैं। इस शृंखला की पहली किताब है, 'आज़ादी मेरा ब्रांड' जो ‘राजकमल सृजनात्मक गद्य सम्मान’ से सम्मानित है। लोग जो मुझमें रह गए इस शृंखला की दूसरी किताब है।
 
अनुराधा बेनीवाल पहले एक घुमक्कड़ हैं, जिज्ञासु हैं, समाजों और देशों के विभाजनों के पार देखने में सक्षम एक संवेदनशील ‘सेल्फ़’ हैं, उसके बाद, और इस सबको मिलाकर, एक समर्थ लेखक हैं।
हरियाणा के एक गाँव से निकली एक लड़की जो अलग-अलग देशों में जाती है, अलग-अलग जींस और जज़्बात के लोगों से मिलती है। कहीं गे, कहीं लेस्बियन, तलाक़शुदा, परिवारशुदा, कहीं धूप की तरह खुली सड़कें-गलियाँ, कहीं भारत से भी ज़्यादा ‘बन्द समाज’।

उनसे मुख़ातिब होते हुए उसे लगता है कि ये सब अलग हैं लेकिन सब ख़ास हैं। दुनिया इन सबके होने से ही सुन्दर है, क्योंकि सबकी अपनी अलहदा कहानी है। इनमें से किसी के भी नहीं होने से दुनिया से कुछ चला जाएगा। अलग-अलग तरह के लोगों से कटकर रहना नहीं, उनसे जुड़ना, उनको जोड़ना ही हमें बेहतर मनुष्य बनाता है; हमें हमारी आत्मा के पवित्र और श्रेष्ठ के पास ले जाता है। ऐसे में उस लड़की को लगता है—मेरे भीतर अब सिर्फ़ मैं नहीं हूँ, और भी अनेक लोग हैं। लोग, जो मुझमें हमेशा के लिए रह गए।