समाचार विश्लेषण/उत्सव के दिन आए पर किसान कहां जाए? 

समाचार विश्लेषण/उत्सव के दिन आए पर किसान कहां जाए? 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय

हमारा देश उत्सव धर्मी देश है । नवरात्र शुरू होते ही दीपावली तक का उत्सव शुरू हो जाता है जो उसके बाद भी चलता है । । भैया दूज और विश्वकर्मा दिवस भी आते हैं । उसके बाद भी क्रिसमस तक उत्सव ही रहता है । इन उत्सवों के चलते बाजारों में रौनक आती है और पैसा सर्कुलेट होता है पूरी मार्केट में । सबको अपना अपना भाग्य मिल जाता है । इसके बावजूद आज कितनी सदियां बीत गयीं दशहरे पर रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले जलते देखना हर पीढ़ी को खुशी देता है । दुर्गा पूजा पर पश्चिमी बंगाल में तो ऐसी झांकियों का प्रदर्शन किया जाता है जो सामाजिक उद्देश्य से जुड़ी होती हैं । उत्तर भारत में ऐसा चलन नहीं है । यहां तो रावण को जलाना है । पटाखे छूटने के बाद घर आ जाना है । पैसा खत्म , मेला हज्म ।  रावण की सबसे बड़ी बुराई कि उसने सीता मां का अपहरण किया और पूरे एक साल तक किसी की संधि की बात न माना । अपनी बहन के साथ हुए जुल्म का बदला लेने के लिए यह अपहरण वाला रास्ता चुना । किसी विद्वान् ने कहा भी कहा है कि राम और रावण दोनों हमारे भीतर होते हैं । जब हम अच्छे कर्म करते हैं तो राम जैसे होते हैं और जब हम घृणित कार्य करते हैं तो रावण जैसे होते हैं । हमारे अंदर ही हैं राम और रावण । सदियों से रावण जलाते जरूर हैं पर रावण प्रतिदिन ज़िंदा हो जाता है जब रेप कांड होते हैं , जब महिला का अपमान किया जाता है तब रावण रोज़ ठहाके लगा रहा होता है कि मुझे जलाकर क्या कर पाये ? मेरा अमृत कलश आज भी काम कर रहा है । मै साथ कि साथ जिंदा हो जाता हूं । बताओ । अभी मेघनाद और कुम्भकर्ण बाकी हैं । 
सिर्फ लकीर पीटते चले जाना और रावण सहित तीन पुतले जलाना कोई नयी बात नहीं । नयी बात यह कि रेप और महिला का अपमान खत्म हों या कम हों । ऐसी झांकियां बननी चाहिएं या पोस्टर्ज जैसे पश्चिमी बंगाल में बनाई जाती हैं । दुर्गा के प्रदेश में तभी तो ममता का अपमान बर्दाश्त न हुआ और मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाया और भवानीपुर से ही नहीं बल्कि तीनों सीटों से तृण मूल कांग्रेस को विजयी बनाया । 
दशहरे के अवसर पर फसल के साथ कोई दुखी है तो वह किसान । कभी धान तो कभी बाजरे की खरीद के लिए प्रदर्शन करने पड़ते हैं । अन्नदाता  अन्न भी उगाये और परेशानी भी झेले । काश , कोई उत्सव किसान को भी खुशी देने वाला बन जाये ....
कोई लौटा किसान के 
खुशियों के दिन ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।