पुस्तक `कर्ममेवजयते' की समीक्षा: शीर्षक ही बोलता है 

पुस्तक `कर्ममेवजयते' की समीक्षा: शीर्षक ही बोलता है 

-*अश्विनी जेतली
कर्ममेवजयते पुस्तक का शीर्षक ही बोलता है कि किसी कर्मप्रधान, कर्मयोगी व्यक्तित्व के संवर्ष, श्रम और निस्वार्थ कर्म की गाथा है। सफल जीवन का स्व-निर्माण करने वाले डा. अशोक भाटिया की प्रेरणात्मक जीवनी का वृतान्त और लेखक ललित बेरी के अलंकृत शब्दों बेजोड़ मेल इस पुस्तक को पठनीय करता है। 

यह कहना बहुत सरल होता है कि फलां व्यक्ति ज़ीरो से हीरो बन गया, भाग्य  ने साथ दिया होगा इत्यादि । वास्तविकता इससे बहुत विपरीत होती है। निःसंदेह भाग्य की भूमिका बहुत अहम होती है तथापि दूरदर्शिता, लगन, परिश्रम और बड़ी सोच के बिना उन्नति सम्भव नहीं होती। यह सब डॉ. अशोक भाटिया की जीवन गाथा कर्ममेवजयते के अध्याय  संघर्ष, श्रम, बाधाएं और प्रगति से साफ झलकता है।  पुस्तक का लेखन इतने मनोरम रूप से किया गया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि हम डॉ. अशोक भाटिया की जीवनी नहीं पढ़ रहे बल्कि उनके जीवन पर आधारित चलचित्र देख रहे हैं। साधारणतया लोग डॉ. अशोक भाटिया को एक सफलतम व्यवसायी के रूप में जानते हैं जिन्होंने अद्‌भुत आईएमसी कम्पनी की संस्थापना की, परन्तु 'कर्ममेवजयते' ने सारे जग को बता दिया है कि डॉ. अशोक भाटिया व्यवसायी ही नहीं अपितु उच्च कोटि के लेखक, प्रेरक वक्ता, जन हितैषी समाज सेवी और विचारक भी हैं।

ललित बेरी का लेखन कार्य  और साहित्य जगत में योगदान सराहनीय है। 'कर्ममेवजयते' से पूर्व वह 32 पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं।  उनके आलेख, फिल्म समीक्षाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन, कई प्रतिष्ठित कंपनियों के विज्ञापनों के लिए टैगलाइनज़  उनके प्रोफाइल का अभिन्न अंग हैं। पिछले वर्ष ललित बेरी ने बॉलीवुड में भी सफल प्रवेश किया।

यह कहना अनुचित नहीं कि 'कर्ममेवजयते' ललित बेरी  की सर्वोत्तम कृति है।

(*वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवम् समीक्षक)