ग़ज़ल /अश्विनी जेतली

ग़ज़ल /अश्विनी जेतली
अश्विनी जेतली।

कौन है अपना कौन पराया
वक्त ने हम को है बतलाया 

बुरे वक्त में साथ छोड़ कर
चल देता अपना ही साया

धूप, आँधियों, बरखा में भी
यार वही, जो मिलने आया

चोर भी उसको कह नहीं पाऊँ
जिस ने दिल का चैन चुराया 

नातेदारों ने जब मुंह मोड़ा
साथ खड़ा आकर हमसाया 

दिल पे मत लेना मेरे भाई 
हमने दिल को है समझाया

महक उठी तब दुनिया मेरी
उसने जब आँचल सरकाया

रौशन हो गये चारों कोने
चेहरा तेरा नज़र जो आया

फुर्सत मिली तो लेख करेंगे
जीवन में क्या खोया-पाया

चार दिनों का मेला जीवन 
बाकी सब तो है मोह माया