समाचार विश्लेषण/सारे घर नहीं राज्यों के बदल डालूंगा 

समाचार विश्लेषण/सारे घर नहीं राज्यों के बदल डालूंगा 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
एक विज्ञापन में एक ही पंक्ति है -सारे घर के बदल डालूंगा यानी बिजली के बल्व बदल डालूंगा और लगता है इस एक वाक्य से भाजपा हाईकमान ने बड़ी प्रेरणा ली है और सारे राज्यों के मुख्यमंत्री बदलने का विचार बना लिया है । यह प्रयोग उत्तराखंड से शुरू किया गया और दो दो बार मुख्यमंत्री बदल कर देखे । पता नहीं क्या फीड बैक मिला कि तुरंत गुजरात में भी यही बदलने का मंत्र लागू कर दिया और मुख्यमंत्री विजय रूपाणी इस्तीफा देने भागे दिल्ली और हाईकमान तो तैयार ही बैठी थी , तुरंत स्वीकार कर लिया । अब इससे भी आगे मज़ेदार बात यह सामने आई कि  रूपाणी के मंत्रियों को भी नये मुख्यमंत्री ने जगह नहीं दी । यानी पूरे घर के बदल डाले चाहे मंत्री हो या मुख्यमंत्री । है न कमाल का आइडिया । जैसे जनता भूल ही जायेगी कि विजय रूपाणी और उसके मंत्री क्या क्या करते रहे उनके साथ । क्या जनता की याददाश्त कमज़ोर मान रही है भाजपा हाईकमान ? यह बहुत बड़ी भूल होगी । इसी जनता ने इमर्जेंसी को भुलाया नहीं था और इंदिरा गांधी जैसी लौह महिला को भी रायबरेली से हरा दिया था । इसी जनता ने चौ बंसीलाल को भिवानी में हरा दिया था । यह वही जनता है जो पाई पाई का हिसाब करती है । यह बहुत बड़ी भूल होगी कि जनता नये चेहरे देख कर पुराने लोगों द्वारा दिये दुख भूल जायेगी । यह वही जनता है जो पंजाब में कांग्रेस का सफाया भी करती रही और मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाये जाने पर माफ कर दिया और तेरह मे से बारह लोकसभा
सीटें कांग्रेस की झोली में डाल दीं । यह वही जनता है जिसने अरूण जेटली को अमृतसर से हरा दिया । चाहे हारे हुए जेटली को वित्त मंत्री बनाया गया । यह वही जनता है जो जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाने को माफ नहीं करेगी । अब उसी महबूबा को नज़रबंद कर क्या आप प्रायश्चित कर रहे हैं ? सरकार बनाने की क्या मजबूरी रही? आखिर विचारधारा वाली पार्टी सिर्फ सत्ता के लोभ में कैसे कैसे समझौते करने लगी ? कभी किसी ने कल्पना भी न की थी कि भाजपा महबूबा के साथ गठबंधन में सरकार बना लेगी । बनाई  और खुद ही गिराई । सहयोग व समर्थन वापस लेकर । 
इधर चर्चा चलती रही कल दिन भर कि हरियाणा के मुमुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर से भी शायद इस्तीफा माग लिया जाये लेकिन खट्टर सकुशल दिल्ली से वापस आ गये हैं । देखो कब तक वे चैन की बंसी बजा पाते हैं ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।