समाचार विश्लेषण /इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल

खुदा मुशर्रफ को माफ करेगा ?

समाचार विश्लेषण /इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और दुबई में निर्वासित जीवन बिता रहे परवेज मुशर्रफ का निधन हो गया । इसी मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का तख्ता पलट कर पाकिस्तान को सैन्य शासन के हवाले कर दिया था । उन्हीं नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ आजकल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं और उन्होंने मुशर्रफ के निधन पर कहा कि खुदा उनके गुनाहों को माफ अता फरमाये ! क्या खुदा सचमुच मुशर्रफ को माफ कर देगा ?
स्वतंत्रता पूर्व हिंदुस्तान के दिल्ली में जन्मे मुशर्रफ के परिवार ने विभाजन के समय पाकिस्तान की राह पकड़ी , जिसके चलते मुशर्रफ की पढ़ाई लिखाई वहीं हुई । जिस नवाज शरीफ ने सैन्य प्रमुख बनाया उसी की सरकार का तख्ता पलट कर राष्ट्रपति बन गये । अच्छा सिला दिया । मुशर्रफ अयूब खान और जिया उल हक के बाद पाकिस्तान के सैन्य शासक बने ।
भारत में जन्मे मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध की व्यूह रचना रची लेकिन मुंह की खाई । इस हार को पचा न सके और भारत के खिलाफ आतंकवादी संगठनों को प्रश्रय देकर खूनी खेल खेलना शुरू किया । वैसे क्रिकेट के शौकीन थे और धोनी यानी माही के फैन ! 
मुम्बई के ताज होटल पर हमला भी इन्हीं के नाम है । हमला करने वाले आतंकवादियों को संरक्षण देने का इल्जाम भी इनके सिर पर है । सन् 1999 में नवाज शरीफ का तख्ता पलट कर सैन्य तानाशाह बने मुशर्रफ को क्या खुदा उनके गुनाहों के बावजूद माफ कर देगा ? दुबई में अंतिम सांस लेने वाले मुशर्रफ को सुपुर्दे खाक पाकिस्तान में ही किया जायेगा । सजा ए मौत पाने वाले मुशर्रफ पहले सैन्य तानाशाह बने । पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की सन् 2007 में हत्या के बाद से मुशर्रफ का सितारा डूबने लगा था । मुशर्रफ ने सत्ता बचाने की कोशिश की लेकिन सफल न हो पाये । मुशर्रफ मार्च, 2016 में दुबई चले गये और अंत समय तक वहीं रहे । 
मुशर्रफ के निधन से यह सवाल फिर उठता है कि पाकिस्तान बार-बार सैन्य शासन या तानाशाही का शिकार क्यों हो जाता है ? लोकतंत्र की जड़ें इतनी कमज़ोर क्यों हैं ? बंटवारे के बाद से जहां भारत में लोकतंत्र पनपता , फलता और फूलता रहा , वहीं पाकिस्तान में सैन्य तानाशाह कैसे ? आर्थिक संकट और सिर्फ सेना पर ही खर्च कैसे पाकिस्तान को पांव पर खड़ा होने दे ? मुशर्रफ के विदा होने पर भी यही कहा जा सकता है कि आखिर हर किसी को इसी खाक में मिल जाना है तो फिर तानाशाही क्यों ?
इक दिन बिक जायेगा 
माटी के मोल 
जग में रह जायेंगे 
प्यारे तेरे बोल ...

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।