समाचार विश्लेषण/इस दल के कितने टुकड़े?

समाचार विश्लेषण/इस दल के कितने टुकड़े?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
ताज़ा घटनाक्रम में रामबिलास पासवान वाली लोक जनशक्ति पार्टी में फूट पड़ गयी और चाचा पशुपति कुमार पारस  ने भतीजे चिराग पासवान को अलग थलग कर दिया । मज़ेदार बात यह है कि चिराग पासवान लोजपा के अध्यक्ष हैं और ऐसा कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में चाचा अपने प्यारे भतीजे को इस पद से भी हटा सकते हैं । लोजपा के छह सांसदों में से पांच सांसदों ने पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया है । सदन में इन्हें लोजपा नेता के रूप में आनन फानन में मान्यता भी दे दी गयी जबकि चिराग चाचा को मनाने में असफल रहे । इस तरह के कदम से अन्य ऐसे पारिवारिक दलों पर भी सहज ही ध्यान चला गया । 

हरियाणा में चौ देवीलाल के परिवार को इनेलो के तौर पर जाना जाता था लेकिन यहां भी चाचा अभय चौटाला और भतीजे दुष्यंत चौटाला में अनबन हुई और चाचा ने भतीजे को इनेलो से बाहर करवाने की घोषणा सुप्रीमो  ओमप्रकाश चौटाला से करवा दी । इस तरह एक नयी पार्टी जजपा का जन्म हो गया । विधानसभा चुनाव चाचा भतीजे ने अलग अलग लड़े । कुछ ऐसा संयोग बना कि जजपा के साथ सत्ता का संतुलन लग गया जिससे दुष्यंत चौटाला  उप मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो गये । सिर्फ दस विधायक जीते और अभय चौटाला इनेलो के इकलौते विधायक बन पाये और किसान आंदोलन के नाम पर विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया । यह तो रहा हरियाणा का एक उदाहरण । पंजाब में शिरोमणि अकाली दल बहुत ही मजबूत दल है । इसके बावजूद यहां भी चाचा प्रकाश सिंह बादल और भतीजे मनप्रीत बादल में नहीं निभ पाई और भतीजे ने अपना भविष्य अकाली दल में न देखकर कांग्रेस ज्वाइन कर ली और इस समय वित्तमंत्री हैं पंजाब के । बार बार यही गाना याद आता है -क्यों भई चाचा? हां भतीजा। यह चाचा भतीजे के बीच का खेल देखने को किसी न किसी राज्य में मिल ही जाता है ।
दूर क्यों जाते हो ? यूपी में चाचा शिवपाल सिंह और भतीजे अखिलेश में क्या क्या नहीं हुआ? पिता मुलायम सिंह यादव ने कितनी मेहनत से समाजवादी पार्टी खड़ी की थी और बेटे को बड़ी ही उम्मीद से विरासत सौंपी थी लेकिन चाचा भतीजे ने मिल कर उनका बुढ़ापा खराब कर दिया । बहुओं के भी रंग अलग अलग दिखे ।

एक और मज़ेदार चाचा भतीजा प्रसंग। महाराष्ट्र का । चाचा शरद पवार को छोड़ कर भतीजे अजीत पवार ने आधी रात को देवेंद्र फडणबीस को मुख्य मंत्री बनवा दिया और खुद उप-मुख्यमंत्री बन गये लेकिन आधी रात का सपना दो चार दिन में ही टूट गया । अजीत पवार वापस चाचा की शरण में आए और नयी गठबंधन सरकार में फिर मंत्री बने । ऐसा माना जाता है कि यह चाचा शरद पवार की यह सोची समझी चाल थी  जिसमें अमित शाह मात खा गये । पर भतीजे को राजनीति तो सिखा ही दी। 

असल में चिराग पासवान ने केंद्र में एनडीए के साथ होने के बावजूद बिहार विधानसभा चुनाव में वहां अपना साथ छोड़ कर नीतीश कुमार भाजपा के गठबंधन के विरूद्ध चुनाव लड़ा जिसे कोई फायदा तो हुआ नहीं लेकिन चिराग अमित शाह की आंख की किरकिरी बन गये और इस कांटे को चाचा पशुपति कुमार पारस के माध्यम से उखाड़ने में देर नहीं की । इसीलिए आनन फानन में संसद में अनुमति भी मिल गयी । अब पशुपति कह रहे हैं कि नीतीश कुमार बहुत अच्छे हैं और हम उनके साथ रहेंगे । नीतीश कुमार को विकास पुरूष कह कर तारीफ की । चिराग चाहें तो हमारे साथ रहें क्योंकि उनके कदम से लोजपा का नुकसान हुआ है । चाचा ने भतीजे को अपने घर के बाहर खड़ा किये रखा । यह बहुत बड़ी सज़ा दी । चिराग ने पहले फिल्मों में किस्मत आजमाई लेकिन फिर पापा रामबिलास पासवान के साथ राजनीति में ही जुट गये लेकिन पासवान जल्दी चले गये और राजनीति का ककहरा सिखाने का मौका ही नहीं मिला । अब चाचा पशुपति पारस जरूर सिखा देंगे कि राजनीति कैसे की जाती है ? क्यों भतीजे ? या क्यों सभी भतीजो?