रेल की पटरियों के बीच/कमलेश भारतीय
भूख का दर्द ब्यान करती हुई पत्रकार कमलेश भारतीय की काव्य रचना
पसरी है मौत
रोटियां बिखरी हैं
जिंदगी और मौत के बीच
रोटी के लिए निकले थे
अपने देस, अपने गांव से
आज न गांव रहा
न पहुंचे अपने देस
बहुत दूर चले गये
रोटी और रेल की पटरियों से दूर
यह कैसी तस्वीर है?
यह कैसा मंज़र?
एक खंजर जैसा चुभ गया
दिल के अंदर...
ये कैसे दिन हैं ?
रोटी के लिए निकले
रोटी के होते भी कट मरे?

-कमलेश भारतीय
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