हरियाणा की माटी से- मणिपुर : अपने ही घर में शरणार्थी 

हरियाणा की माटी से- मणिपुर : अपने ही घर में शरणार्थी 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
कह सकते हैं कि कश्मीर के बाद मणिपुर भी ऐसा राज्य बनता जा रहा है जहां लोग अपने ही राज्य में राहत शिविरों में शरणार्थी बनने को विवश हो गये हैं । सन् 1990 के दिनों में मैं चंडीगढ़ में जब पत्रकारिता कर रहा था तब वहां जम्मू कश्मीर के विस्थापितों को जिस हाल में देखा था उन दिनों को भूल नहीं पाया हूं । यही लोग दिल्ली के शिविरों में भी रह कश्मीरियों का हुआ और अभी तक इन्हें कश्मीर में अपने घर लौटना नसीब नहीं हुआ । हालांकि अभिनेता अनुपम खेर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर बहुत सी उम्मीदें जगाईं और वहां की सच्ची तस्वीर कहते हुए कश्मीर फाइल्ज जैसी फिल्म भी सामने आई लेकिन सिवाय फिल्म निर्माता के किसी शरणार्थी को कोई फायदा नहीं हुआ । धारा 370 हटाने का श्रेय भी लिया लेकिन लोग अपने घरों में वापिस न जा पाये ! हालांकि हमारे मुख्यमंत्री ने तब मज़ाक में कहा था कि अब हरियाणा में कश्मीरी दुल्हनों आयेंगी । दूसरे यह भी कहा गया था भाजपा की ओर से कि कश्मीर में आशियाना बना सकोगे ! 
अब पिछले पूरे दो महीने से मणिपुर में हिसा जारी है और ऐसे समाचार हैं कि तीन सौ से ऊपर शिविरों में पचास हजार से अधिक शरणार्थी रहने को विवश हैं । कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मणिपुर जाने पर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इस्तीफा देने का नाटक किया और तुरंत अपने हक में प्रदर्शन करवा कर इस्तीफे फा फाड़ने का और भी सफल नाटक किया ! राहुल गांधी का कहना है कि मणिपुर को शांति चाहिये और हिंसा कोई समाधान नहीं ! मज़ेदार बात यह होगी कि बीरेन सिंह इस सबके पीछे कांग्रेस का हाथ होने का आरोप लगाने से नहीं चूकेंगे! अब यह वही मणिपुर है जहां भाजपा ने सिर्फ दो विधायक होने पर भी अपनी सरकार बनाने का कीर्तिमान बनाया था और भाजपा मणिपुर में शांति और विकास लाने के दावे करती नहीं थकती थी । अब क्या हुआ मणिपुर को ? किसने जातीय हिंसा भड़का दी ? क्यों लोगों को अपने घर छोडकर राहत शिविरों में रहना पड़ा ? कहीं यह कश्मीर वालों की तरह स्थायी समस्या तो न बन जायेगी ? शिविरों में रहने वाले यही तो कह रहे हैं कि अपने घरों में कभी लौट भी पायेंगे या यहीं शरणार्थियों की तरह ज़िंदगी गुजारने का अभिशाप मिलेगा ? दुष्यंत कुमार के शब्दों में :
कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिये 
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिये ! 

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।