समाचार विश्लेषण/कांग्रेस का स्थापना दिवस और गांधी परिवार 

समाचार विश्लेषण/कांग्रेस का स्थापना दिवस और गांधी परिवार 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 

कांग्रेस के स्थापना दिवस के आयोजन के अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी नहीं आए । हां , प्रियंका गांधी मौजूद रहीं । सोनिया गांधी और राहुल गांधी के न आने से कांग्रेस तो कांग्रेस भाजपा में भी इसकी चर्चा रही । खासतौर पर राहुल गांधी के ऐसे महत्त्वपूर्ण मौके पर विदेश चले जाने की । इसके साथ ही कई उदाहरण दिये जा रहे हैं जब ऐसे महत्त्वपूर्ण अवसरों पर राहुल गांधी विदेश की पतली गली में निकल लिये । आखिर क्यों ? चुनाव हों या इस समय किसान आंदोलन जैसा बड़ा मुद्दा हो , राहुल विदेश क्यों चले जाते हैं? बताया यह जा रहा है कि उनकी नानी की तबीयत ठीक नहीं पर संयोग ऐसा है कि वे हर साल के अंत में चुपचाप विदेश जाते ही हैं । एक ऐसी पार्टी जिस पर विपक्ष की भूमिका निभाने का जिम्मा हो , किसान आंदोलन के समय उस पार्टी का शीर्ष नेता विदेश चला जाये तो किसान ठगा  हुआ महसूस करेंगे या नहीं ? जब आपको किसानों के बीच रहना है और उस आंदोलन को समर्थन देना है तब आप इस तरह बच कर नहीं निकल सकते । यही पलायन राहुल गांधी को परिपक्व नेता नहीं बनने दे रहा । इससे अच्छा होता शुरू से ही सोनिया गांधी ने प्रियंका को आगे बढ़ाया होता । वे अभी तक राहुल से काफी परिपक्व व्यवहार कर रही हैं और पार्टी के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह बड़ी सफलता से कर रही हैं । चाहे यूपी का मामला सो या किसानों का । हर मामले पर सतर्क और सक्रिय । 

कांग्रेस ने लगातार दो लोकसभा चुनाव हारे और प्रतिपक्षी नेता लायक सीटें भी नहीं जीतीं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी प्रतिपक्ष के नेता का दर्जा नहीं दिया । बेशक राहुल ने लोकसभा में मोदी के गले में जादू की जफ्फी भी डाली और ज्योतिरादित्य को आंख बार कर बदनाम भी हुए पर हालात वही ढाक के तीन पात । ऐसे बचपने के व्यवहार पर ही तो दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री व गांधी परिवार के निकट शीला दीक्षित ने शायद सही कहा था कि राहुल को मैच्योर होने के लिए थोड़ा वक्त चाहिए । कितना वक्त चाहिए ? पचास के निकट तो लग गये । जब राहुल आए थे तब सबकी नज़रें इन पर लगी थीं । आज भाजपा व्यंग्य में कहती है कि कांग्रेस की कमान राहुल के हाथ ही रहे ताकि अगला लोकसभा चुनाव आसानी से जीत सकें । ऐसी चर्चाओं में भी विदेश यात्रा ? अरे । कब तक यह अस्थायी सा व्यवहार चलेगा ? मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक-आधे अधूरे की रियल लाइफ हीरोइन व उनकी पत्नी अनिता राकेश ने मुझसे इंटरव्यू में कहा था : थोड़ा सा यह और थोड़ा सा वह ।।इससे कुछ नहीं होता । आदमी आधा अधूरा ही रहता है । न वो पाया , न यह पाया ।

कहीं राहुल गांधी भी आधे अधूरे के नायक जैसे नेता तो नहीं ?