खेती में ट्रैक्टर की तरह जरूरी होने जा रहे हैं ड्रोन

मोबाइल व इंटरनेट के आने से आम भारतीय की जिंदगी पहले ही बदल चुकी है। अब तैयार हो जाइए ड्रोन क्रांति के लिए, जो देश की जीवनशैली और अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर डालने की तैयारी में हैं। 

खेती में ट्रैक्टर की तरह जरूरी होने जा रहे हैं ड्रोन

मोबाइल व इंटरनेट के आने से आम भारतीय की जिंदगी पहले ही बदल चुकी है। अब तैयार हो जाइए ड्रोन क्रांति के लिए, जो देश की जीवनशैली और अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर डालने की तैयारी में हैं। ड्रोन रिवोल्यूशन का आगाज हो चुका है और खिलौना हेलीकॉप्टर जैसे दिखने वाले ड्रोन आम जिंदगी का हिस्सा होने को तैयार हैं। सरकार ने ड्रोन निर्माण और इनके उपयोग की नीतियां सरल कर दी हैं, ताकि इनका कमर्शियल इस्तेमाल सुलभ हो सके। सैन्य कार्यों और फोटोग्राफी के लिए ड्रोन पहले ही प्रयोग हो रहे थे, अब कृषि कार्यों में भी इनका इस्तेमाल शुरू हो गया है। किसानों के लिए ड्रोन उसी तरह मददगार साबित होंगे, जैसे ट्रैक्टर के आने से खेती का अंदाज बदल गया। भारत में आजादी से लेकर अब तक, अगर कोई क्षेत्र सबसे अधिक पिछड़ा रहा है, तो वो है खेती किसानी। टैक्नोलॉजी के नाम पर कृषि में ट्रैक्टर, थ्रेशर, ट्यूबवैल और पंपिंग सेट से आगे नहीं बढ़ पाई थी कहानी। बड़े फार्मों को छोड़ दें तो मशीनरी से दूर ही रही है कृषि। ऐसे में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 100 किसान ड्रोन्स की औपचारिक लांचिंग मायने रखती है। यह खेती में ड्रोन युग की शुरुआत है।
 
फिलहाल, ड्रोन से खेतों में कीटनाशक दवाओं, रासायनिक खाद, बीज, पानी आदि का छिड़काव किया जाएगा। धीरे-धीरे इन्हें कृषि भूमि के सर्वे, नापजोख, फल व फूलों जैसी उपज को बाजार तक पहुंचाने और जरूरी दवाएं गांवों तक भेजने के काम में भी लगाया जाएगा। अभी देश में करीब 200 छोटी फर्में (स्टार्टअप) ड्रोन बनाने के काम में जुटी हैं, जिनकी संख्या आने वाले समय में हजारों में पहुंच जाएगी। एग्री ड्रोन से खेती में एक नई तकनीकी क्रांति के बीज पड़ चुके हैं, जिसकी फसल तेजी से लहलहाएगी, इसमें कोई दो राय नहीं। ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया के अनुसार, अगले 5 वर्षों में भारत में ड्रोन इंडस्ट्री 10 गुना बढ़कर 50,000 करोड़ रुपए की हो सकती है। इंडस्ट्री अगले 3 वर्षों में 10,000 और अगले 5 वर्षों में इससे दोगुने लोगों को रोजगार दे सकती है। बीआईएस रिसर्च की जुलाई 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक ड्रोन बाजार, जिस पर फिलहाल अमेरिका, चीन व इज़राइल का दबदबा है, वित्त वर्ष 2011-22 में 28.47 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 4.25 प्रतिशत रहने की संभावना है।
 
फोटोग्राफी के अलावा ड्रोन को कई क्षेत्रों में प्रयोग किया जा सकता है। फसलों पर कीटनाशकों के छिड़काव, दूरदराज क्षेत्रों में दवाओं की डिलीवरी, भू-सर्वेक्षण, वन्य प्राणियों की निगरानी, पुलिस द्वारा कानून-व्यवस्था और ट्रेफिक प्रबंधन, असंभव स्थानों की फोटोग्राफी, वैडिंग फोटोग्राफी, फिल्ममेकिंग, आपदा प्रबंधन, निर्माण गतिविधियों व पत्रकारिता आदि अनेक क्षेत्रों व कार्यों में ड्रोन का प्रयोग किया जा सकता है। हिमाचल का पहला ड्रोन स्कूल कांगड़ा में खुलेगा, जहां ड्रोन को कॅरियर के रूप में अपनाने के इच्छुक युवाओं को प्रशिक्षण मिलेगा। युवाओं के लिए ड्रोन पायलट या ड्रोन ऑपरेटर के रूप में करियर के नये विकल्प सामने आ रहे हैं। ड्रोन को अनमैन्ड एरियल व्हीकल (यूएवी) या अनमैन्ड एयरक्राफ्ट सिस्टम (यूएएस) भी कहा जाता है। अब देश में ड्रोन संबंधी नियम-कायदे लागू हो गए हैं, जिससे इनका निर्माण और प्रयोग सुलभ हो गया है। इस क्षेत्र में सॉफ्टवेयर डवलपमेंट, असेम्बलिंग, रिपेयर, ड्रोन पायलट और ड्रोन ऑपरेटर जैसे जॉब उपलब्ध हैं। 
 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)