सूर्यकवि पं. लख्मीचंद की जयंती पर डीएलसी-सुपवा में दी गई सांस्कृतिक श्रद्धांजलि

दादा लख्मी का जीवन कलाकार की सच्चाई और ग्रामीण भारत की आत्मा का प्रतीक: यशपाल शर्मा

सूर्यकवि पं. लख्मीचंद की जयंती पर डीएलसी-सुपवा में दी गई सांस्कृतिक श्रद्धांजलि

रोहतक, गिरीश सैनी। सूर्यकवि पं. लख्मीचंद की जयंती के उपलक्ष्य में क्षेत्रीय गौरव और साहित्यिक धरोहर के उत्सव के रूप में, स्थानीय दादा लख्मीचंद राज्य प्रदर्शन एवं दृश्य कला विवि (डीएलसी सुपवा) में मंगलवार को एक भव्य सांस्कृतिक आयोजन किया गया। 

पं. लख्मीचंद, जिन्हें हरियाणा की आत्मा और लोक संस्कृति के अमर कवि के रूप में माना जाता है, को समर्पित इस आयोजन में प्रतिष्ठित कलाकारों, गणमान्य अतिथियों, विद्वानों और विद्यार्थियों ने मिलकर उस महान कवि को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनकी रचनात्मक छाया आज भी हरियाणवी सांस्कृतिक चेतना को दिशा देती है।
कार्यक्रम की शुरुआत पं. लख्मीचंद जी के प्रपौत्र पं. विष्णु दत्त द्वारा प्रस्तुत की गई भावपूर्ण रागनियों से हुई। इन पारंपरिक लोक गायनों में भाव, स्मृति और कला की अद्भुत झलक थी। 

इस दौरान एमडीयू कुलपति प्रो. राजबीर सिंह, संभागीय आयुक्त पी.सी. मीणा (आईएएस), एसपी नरेंद्र बिजारणिया (आईपीएस) सहित अन्य गणमान्य जन उपस्थित रहे। 

स्वागत भाषण में कुलपति डॉ. अमित आर्य ने सभी अतिथियों और कलाकारों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं है; यह सांस्कृतिक पुनःस्थापन का प्रयास है। पं. लख्मीचंद हरियाणा की आत्मा हैं। जब कवि, कलाकार और विद्यार्थी एक ही मंच पर आते हैं, तो यह सुनिश्चित होता है कि उनकी कालजयी दृष्टि और कला आज की रचनात्मक दुनिया में फिर से जीवंत हो। 

विवि के मिनी ऑडिटोरियम में पं. लख्मीचंद के जीवन पर आधारित फीचर फिल्म ‘दादा लख्मी’ का विशेष प्रदर्शन हुआ। यह बायोपिक फिल्म उनके जीवन-संघर्ष, साहित्यिक अवदान और हरियाणवी समाज पर उनके सांस्कृतिक प्रभाव को अत्यंत भावनात्मक रूप में प्रस्तुत करती है।

फिल्म की स्क्रीनिंग के उपरांत, डॉ. अमित आर्य ने फिल्म के निर्माता एवं वरिष्ठ अभिनेता यशपाल शर्मा सहित पूरी टीम को सम्मानित किया। यशपाल शर्मा, जिन्होंने फिल्म में पं. लख्मीचंद की भूमिका निभाई, ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा, “दादा लख्मी का किरदार निभाना मेरे लिए सौभाग्य भी था और एक जिम्मेदारी भी। उनका जीवन कलाकार की सच्चाई और ग्रामीण भारत की आत्मा का प्रतीक है। 

इस दौरान कुलपति डॉ. अमित आर्य ने पं. लख्मीचंद के परिवारजनों को भी सम्मानित किया, जिन्होंने पीढ़ियों से उनकी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखा है। इस कार्यक्रम में प्राध्यापक, स्टाफ, नवोदित फिल्मकार, थिएटर विद्यार्थी, और क्षेत्र भर से आए लोककला प्रेमियों ने भाग लिया। हरियाणवी लोक-चित्रणों से सजा संपूर्ण परिसर परंपरा और आधुनिक शिक्षा के संगम का सजीव उदाहरण प्रस्तुत कर रहा था। कुलसचिव डॉ. गुंजन मलिक ने अंत में सभी अतिथियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।