समाचार विश्लेषण/तिवारी की किताब से कांग्रेस में विवाद 

समाचार विश्लेषण/तिवारी की किताब से कांग्रेस में विवाद 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
किताबें लिखी जाती हैं और इन पर विवाद भी होते हैं । सबसे बड़ा विवाद सलमान रश्दी की किताब'सेटेनिक वर्सिज' पर हुआ था और उनको मारने का फतबा तक जारी हो गया था । वैसा ज़ोरदार विवाद फिर तस्लीमा नसरीन की किताब 'लज्जा' को लेकर हुआ और उसे अपना वतन छोड़ कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी । इससे कुछ दिन पहले तक कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की किताब पर भी विवाद छिड़ गया था । अब नया विवाद कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी की किताब पर शुरू हुआ है । मनीष तिवारी की किताब है -'टन फ्लैश प्वाइंट्स : ट्वंटी ईयर्स' ।
पुस्तक में सबसे ज्यादा विवाद 26/11 के मुम्बई के ताज होटल पर पाकिस्तान के आतंकवादियों के हमले को लेकर है । मनीष तिवारी तब मनमोहन सरकार मे मंत्री भी थे और उनका मानना है कि इस आतंकवादी हमले के बाद भारत को कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए थी । कई बार संयम कमज़ोरी की निशानी होती है । संयम ताकत की पहचान नहीं है । ऐसे मौकों पर शब्दों से ज्यादा कार्यवाई दिखनी चाहिए । यह ऐसा ही मौका था । 
इस पर जाहिर है कि भाजपा की ओर से प्रतिक्रिया आती और आई कि निकम्मी थी सरकार जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर रखा । भारत की अखंडता और सुरक्षा की कांग्रेस सरकार को कोई चिंता नहीं थी । इस पर मनीष तिवारी का कहना है कि 304 पृष्ठ की किताब में एक उद्धरण पर भाजपा की प्रतिक्रिया पर मुझे हंसी आती है । भाजपा अपने समय में भी राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति से निपटने के लिए कड़े विश्लेषण पर भी इसी तरह की प्रतिक्रिया दे । वैसे अगर मनीष को कोई एतराज था तो तब जाहिर करना चाहिए था । अब लकीर पीटने का क्या फायदा ?
दूसरी ओर कांग्रेस ने  कहा कि किताब आने दीजिए और हम इसे पढ़ेंगे फिर देखते हैं कि चर्चा करनी है भी या नहीं । आम लोग आज महंगाई के कारण संघर्ष कर रहे हैं । हमारा धर्म है कि हम इन लोगों की आवाज़ उठायें ।  
वैसे आजकल मनीष तिवारी कांग्रेस के विद्रोही 'जी 23' समूह में शामिल हैं । इसीलिए सलमान खुर्शीद ने कहा कि अनुशासन समिति इस पर विचार कर सकती है और कुछ कांग्रेस नेता भाजपा के स्वीपर सेल की तरह काम कर रहे हैं । इस किताब की टाइमिंग अनुशासनहीनता के करीब है । 
जो भी हो मनीष तिवारी ने लुधियाना से निश्चित हार देखते हुए एक समय लोकसभा चुनाव न लड़ने की असमर्थता जाहिर की थी और अस्पताल जाकर दाखिल हो गये थे । जब पार्टी का कठिन समय था तब वे चुनाव लड़ने से भाग खड़े हुए और अगली बार जब जीत निश्चित थी तो टिकट नहीं दिया गया । इसलिए इनका ' जी 23 ' में जाना तय हो गया।  खैर । आगे आगे देखिए होता है क्या? कहीं तृण मूल कांग्रेस के द्वार पर दस्तक न दे दें जैसे अशोक तंवर कीर्ति आजाद ने दस्तक दी , द्वार खोला ममता बनर्जी ने और शामिल कर लिया ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।