समाचार विश्लेषण/सत्ता और विपक्ष में घमासान, जनता का नुकसान 

समाचार विश्लेषण/सत्ता और विपक्ष में घमासान, जनता का नुकसान 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
मानसून सत्र बीत गया अनिश्चितकाल के लिए समाप्त लेकिन यह सत्र तो जैसे आया वैसे न आया । एक समान आने न आने जैसा । सिर्फ हंगामा होता रहा और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाये जाते रहे । सत्ता पक्ष का आरोप कि सदन चलने नहीं दिये गये और विपक्ष का आरोप कि उनको मुद्दे उठाने का समय ही नहीं दिया गया । प्रधानमंत्री भी बहुत दुखी नज़र आये और राहुल गांधी भी यानी विपक्षी नेता भी । राजी कोई न गया इन सदनों से । 
देश में कृषि कानूनों के खिलाफ रहे आंदोलन को विपक्ष उठाना चाहता था लेकिन समय नहीं दिया गया । पेट्रोल , डीज़ल   रसोई गैस के दाम आसमान छूने की बात करना चाहता था लेकिन समय नहीं दिया गया । जासूसी कांड की गूंज सुनाना चाहता था लेकिन समय नहीं दिया गया । फिर दुख किस बात का साहब ? आपने विपक्ष को कुछ मुद्दे उठाने का समय ही नहीं दिया और विपक्ष संसद के सदन से बाहर सड़कों पर प्रदर्शन के लिए निकल गया तो यह किसका दोष या कसूर माना जाये ? जब सदन चल रहे हों और विपक्ष सदन छोड कर सड़कों पर निकल रहा हो तो फिर सदन चलाने का औचित्य ही क्या ?
दूसरी ओर हमारे प्रिय अनुराग ठाकुर कहते हैं कि विपक्ष जनता से माफी मांगे , देश से माफी मांगे । जनता विपक्ष को माफ नहीं करेगी । हमारे प्रधानमंत्री भी कह रहे हैं कि 133 करोड़ रुपये सदन न चलने के बावजूद सदन पर खर्च नहीं बर्बाद हो चुके । इतना नुक्सान आखिर किसका हुआ ? सत्ता पक्ष का या विपक्ष का ? जी नहीं।  हमारे देशवासियों का नुकसान हुआ । नेताओं का हठ जीत गया और जनता का विश्वास और पैसा डूब गया । हमें न पक्ष से मतलब न विपक्ष से हमें तो अपने पैसे और विश्वास से मतलब जो छिन गया । हमे तो पक्ष हो या विपक्ष दोनों ने मारा और लूटा । कोई हमारा नहीं । कागज़ के जहाज चलाने विपक्ष को संसद में नहीं भेजा था और मार्शल से सांसदों की पिटाई कर बाहर फेंकने के लिए सत्ता को नहीं बोला था । हमने तो  आसमान छूती महंगाई को कम करने की उम्मीद की थी । हमने तो पेट्रोल , डीज़ल व रसोई गैस के दाम कम करवाने की उम्मीद की थी लेकिन यहां तो सिर्फ और सिर्फ हंगामा ही होता रहा और सत्र बीत भी गया । मेरा सुंदर सपना बीत गया  ,,जनता का सुंदर भ्रम टूट गया कि संसद में उसकी सुनवाई होगी । कोई सुनवाई नहीं । बस । एक तरफ राजहठ, दूसरी तरफ सड़क पर हंगामा । भारी गयी बेचारी जनता । मारा गया आम आदमी ।
बिल्कुल दूसरी तरह भी विरोध हो सकता है बिना किसी हंगामे के ।।काली पट्टियां बांध कर या मुंह पर मास्क लगाकर । पर कार्यवाही तो करने दीजिए या चलने दीजिए संसद । ऐसे तो सावन क्या , शीत सत्र भी आकर चला जायेगा । सारे के सारे सत्र बीत जायेंगे । 
तुम्हारी भी जय जय 
हमारी भी जय जय 
न तुम हारे 
न हम सारे ,,,
हारी तो हारी 
जनता हारी ,,,
जिसके 133 करोड़ रुपये बरबाद कर दिये मिल कर ।
(लेखक पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी हैं)