समाचार विश्लेषण/सावधान, आगे खतरनाक मोड़ है 

समाचार विश्लेषण/सावधान, आगे खतरनाक मोड़ है 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
पहाड़ों पर जाते समय यह बोर्ड आमतौर पर  देखने -पढ़ने को मिलता है -सावधान , आगे खतरनाक मोड़ है । यानी आगे की राह खतरनाक है । जरा संभल कर चलिए । अनेक जगह नदी नालों के किनारे भी लिखा रहता है -आगे पानी गहरा है । संभल कर । ये चेतावनियां इसलिए ध्यान में आ रही हैं कि किसान आंदोलन के आगे भी अब खतरनाक मोड़ आ गया लगता है जिसके बारे में किसान नेताओं को बैठकर चिंतन मनन करना होगा । बहुत जरूरी हो गया है । पहले दीप सिद्धू ने बिना किसी परामर्श के लाल किले पर तिरंगे की बजाय किसी ओर झंडे को फहरा दिया जिससे काफी चर्चा हुई और किसान नेता यह साबित करने में लगे रहे कि दीप सिद्धू के रिश्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हैं न कि हमसे । अभी दीप सिद्धू पर अदालती कार्यवाही जारी है ।

फिर पश्चिमी बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की मदद के लिए पहुंचे किसान नेताओं को कानों कान यह खबर भी न हुई कि एक बंगाली युवती को युवा लोग साथ ले आए हैं और रेल यात्रा के दौरान भी छेड़छाड़ करते रहे । फिर उस युवती की मृत्यु को शहीदी में बदलने की कवायद शुरू हुई जो बेकार रही । सच उजागर हो जाने पर काफी बड़ा धब्बा किसान आंदोलन पर लग गया । कह सकते हैं कि लागा चुनरी में दाग छिपाऊं कैसे ? इस युवती का पिता वापस बंगा  लौट चुका है और पुलिस जांच में मोबाइल बहुत बड़ा सबूत बन रहा है । चुनरी में दाग छिप तो रहे नहीं बल्कि बढ़ते और फैलते जा रहे हैं । अब एक युवक को पेट्रोल छिड़क कर जलाये जाने और शहीद करार देने की बात सामने आ रही है । कहा जाता है कि वह युवक घूमता घामता किसानों की झोंपड़ियों की ओर चला आया और वहां बैठे युवकों ने पहले उसे शराब पिलाई और बाद में पेट्रोल छिड़क कर जला डाला और शहीद बनाने की कोशिश की गयी । दूसरी तरफ किसान नेता इसे आत्महत्या करार दे रहे हैं और यही कि इस आत्महत्या को किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। 

असल में किसान आंदोलन को केंद्र सरकार ने जानबूझ कर लटकाये रखा है और बातचीत के द्वार भी बंद कर लिया हैं । किसानों में धीरे धीरे निराशा आ रही है । कुछ किसानों ने आत्महत्याएं भी की हैं । खासतौर से युवा किसानों की बेसब्री बढ़ती जा रही है । अब किसान आंदोलन को कैसे चलाना है और इसका नये रूप पर चर्चा होना जरूरी हो गया है ।

एक समय महात्मा गांधी ने नौआखली आंदोलन सिर्फ इसलिए वापस ले लिया था कि यह उग्र रूप धारण करने लगा था । बिना किसी लम्बे चौड़े विमर्श के महात्मा गांधी ने अचानक आंदोलन वापस ले लिया था और खूब चर्चा भी हुई लेकिन गांधी इसीलिए गांधी थे कि आने वाले खतरे को भांप गये थे कि आगे खतरनाक मोड़ है और अब किसान नेताओं को भी सोचना होगा कि आगे पानी गहरा होता जा रहा है । कहीं डूब ही न जायें । इसलिए इस आंदोलन पर पुनर्विचार करें एक साथ बैठ कर या फिर नया रूप निश्चित करें ।