गुरु तेग बहादुर साहिब के 350वें शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में सुपवा में संगोष्ठी आयोजित

गुरु तेग बहादुर साहिब के 350वें शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में सुपवा में संगोष्ठी आयोजित

रोहतक, गिरीश सैनी। स्थानीय दादा लखमी चंद राज्य प्रदर्शन एवं दृश्य कला विवि (डीएलसी सुपवा) में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के 350वें शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में वक्ताओं सहित संकाय सदस्यों और छात्रों ने भाग लिया। शुरुआत में दिल्ली के लाल किला बम विस्फोट पीड़ितों की स्मृति में 2 मिनट का मौन रखा गया।

 

बतौर वक्ता, हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. आदित्य बत्रा ने गुरु तेग बहादुर साहिब जी का जीवन वृत्तांत प्रस्तुत किया। उनकी आध्यात्मिक यात्रा और उस गहन नैतिक साहस का वर्णन किया गया औऱ बताया कि कैसे गुरु तेग बहादुर ने मुगल सम्राट औरंगजेब के धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ खड़े होकर समर्पण के बजाय शहादत को चुना। उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर का मुगल अत्याचार के प्रति निडर प्रतिरोध केवल एक अवज्ञा का कार्य नहीं था, बल्कि मानवाधिकारों और आस्था की स्वतंत्रता के लिए एक सभ्यतागत रुख था। गुरु तेग बहादुर के बलिदान ने भारत के सह-अस्तित्व, गरिमा और न्याय के शाश्वत मूल्यों की रक्षा की।

 

कुलपति डॉ. अमित आर्य के संरक्षण में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए, कुलसचिव डॉ. गुंजन मलिक मनोचा ने शिक्षा और चिंतन के माध्यम से गुरु की शिक्षाओं को युवा पीढ़ी तक पहुँचाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर का जीवन निडरता, करुणा और सहिष्णुता की भावना का उदाहरण है। अन्याय के प्रति उनका प्रतिरोध और दूसरों की आस्था की रक्षा के लिए उनका सर्वोच्च बलिदान नैतिक साहस का एक ऐसा पाठ है जो समय से परे है।