समाचार विश्लेषण/यू ट्यूबर्ज और रणनीतिकार

समाचार विश्लेषण/यू ट्यूबर्ज और रणनीतिकार
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
पत्रकारिता में एक नयी पीढ़ी आई है । हिसार शहर का मेरा अपना अनुभव है । बाकी शहरों की आप जाने । पहले प्रेस वार्ता में जाते थे तो प्रिंट मीडिया के लोग सम्मान से आगे बिठाये जाते थे । पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला हमेशा सबसे कुशल क्षेम पूछने के बाद अपनी वार्ता शुरू करते और बीच बीच में चुटकी लेकर कहते आपको तो राज्यसभा में भिजवाऊंगा । इलेक्ट्रानिक मीडिया में जी न्यूज के सभी शहरों के सिटी केबल्ज भी काफी लोकप्रिय थे । सांध्य दैनिक भी हिसार में अपनी पैठ व पकड़ बना चुके थे । 
अब नये दौर की पत्रकारिता आई है और हर शहर में यू ट्यूबर्ज की भरमार हो गयी है । प्रिंट मीडिया के लोग पीछे चले गये और यू ट्यूबर्ज आगे ही आगे । सवाल पूछने का कोई हिसाब नहीं । लगातार सवाल । किसी दूसरे का इंतज़ार भी नहीं करते । मज़ेदार बात कि प्रोफैशनली ज्यादा साउंड कम ही यू ट्यूबर्ज हैं और वे किसी और प्रोफैशन को छोड़ कर या किसी और प्रोफैशन को करते हुए यू ट्यूब पर चैनल भी चलाते हैं । यह कोई बुराई नहीं । हर किसी को अपना काम करने का अधिकार संविधान ने दे रखा है । वैसे तो कुछ विवाद भी किसी किसी शहर में प्रिंट और यू ट्यूबर्ज में नेताओं की मौजूदगी में ही 
अपने अपने रोल को लेकर हुए । शहरों का उल्लेख नहीं करना चाहता । बड़ी बात कि प्रोफैशनली साउंड या कहिए कि अनुभव व गैर व्यवसायी 
पत्रकारों के बीच विवाद या विभाजन की रेखा बनती गयी । यह रेखा नेताओं के सामने भी साफ थी लेकिन अपने प्रचार के लोभ में यू ट्यूबर्ज को सम्मान दिया । इसमें कोई बुराई नहीं ।
अब किसान आंदोलन आने पर इन्हीं यू ट्यूबर्ज की ओर हर सरकार का ध्यान गया जो पहले नहीं था । मज़ेदार बात कि मंत्रियों की प्रेस वार्ताओं में भी इन्हें कोई रोक टोक नहीं थी । मंत्रियों या सरकार के ध्यान में भी सब कुछ था लेकिन एक यू ट्यूबर्ज की एक पोस्ट पर हरियाणा सरकार का ध्यान ऐसा गया कि उस पर केस दर्ज कर लिया गया । अम्बेडकर दिवस चौदह अप्रैल को भाजपा जजपा नेता मनाने लोगों के बीच जायेंगे । यह एक कोशिश है किसान आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्त्ताओं द्वारा विरोध को रोकने की जिससे वे जनता के बीच जा सकें और यदि फिर भी विरोध हो तो दलित वर्ग को यह बता सकें कि किसान आपको भी बख्श नहीं रहे । यह आरोप उस यू ट्यूबर्ज की एक पोस्ट के आधार पर लगाये गये हैं और केस दर्ज कर लिया गया है कि यह संदेश हरियाणा के हित में नहीं ।  
आज सरकार के एक प्रतिनिधि ने इस यू ट्यूबर्ज की पोस्ट के साथ कमेंट करते सवाल किया है कि यह किसी पत्रकार की भाषा न होकर किसी गुंडे की भाषा लग रही है । इसलिए केस दर्ज हुआ हरियाणा के भाईचारे को बचाने के लिए । अब सवाल उठता है कि क्या यू ट्यूबर्ज को सरकार पत्रकार मान रही है या नहीं ? यदि पत्रकार मान रही है तो फिर पहले से हर वार्ता में आने क्यों दिया ? यू ट्यूबर्ज लगातार निशाने पर हैं । चाहे दिल्ली बाॅर्डर की बात हो । अब हरियाणा में यह पहला मामला आ चुका है । क्या इन की कोई मान्यता की शर्तें तय होंगीं ? पत्रकारों के संगठन ने जब बैठक की तो एक युवा यू ट्यूबर ने सवाल पूछा जो बहुत जायज था कि पहले यह तो साफ होना चाहिए कि हमें बैठक में बुलाया किस हैसियत से ? हमारा विरोध भी करते हो और हमारा सहयोग भी मांगते हो ? सही सवाल । यही सवाल सरकार से भी है कि जब तक यू ट्यूबर्ज आपके हित में कुछ बोलता या तैयार करता है तब उसकी भाषा की ओर ध्यान क्यों नहीं जाता ? उसकी मान्यता की बात क्यों नहीं उठती ? उसके प्रोफैशनल होने या न होने की जांच क्यों नहीं की जाती? अचानक एक केस दर्ज कर सरकार अपनी बात सामने रखती है । हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आज़ादी है लेकिन संविधान में दूसरों को भी आजादी है । जवाहर लाल नेहरू ने इसकी बड़ी प्यारी व्याख्या दी थी कि जहां से मेरी नाक शुरू होती है , वहां से मेरी स्वतंत्रता शुरू होती है और आपकी खत्म । सरकार को बहुत पहले ही यू ट्यूबर्ज की इस बढ़ती संख्या के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए था लेकिन तब तो इनके लाखों फाॅलोअर्ज के लोभ में अपने इंटरव्यू भी देते रहे । अब सोचने का समय है और कुछ नियम व शर्तें तय करने का भी । 
दूसरी ओर पश्चिमी बंगाल के रणनीतिकार प्रशांत किशोर के एक ऐसे ही वायरल हो रहे वीडियो से विवाद शुरू हो गया है । प्रशांत किशोर कह रहे हैं कि यदि मोदी मीडिया में साहस और नैतिकता है तो पूरा वीडियो दिखायें । प्रशांत किशोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पश्चिमी बंगाल में बराबर का लोकप्रिय,करार दे रहे हैं । अभी आधा ही चुनाव हुआ है । यदि इसके बीच ममता बनर्जी के रणनीतिकार ही हार मान रहे हैं तो बाकी का चुनाव तो प्रभावित होगा ही । इस रणनीतिकार को इतनी छूट दीदी ने दी कि अनेक मंत्री नाराज होकर भाजपा में चले गये । अब वही रणनीतिकार बीच मंझधार छोड़ कर जाने वाला लग रहा है । यदि राजनीतिक दल इस तरह ठेके पर सेवायें लेंगे तो इस तरह के परिणाम भी सामने आयेंगे । राजनीति की सोच भी ठेके पर । हमसे बेहतर कौन जाने यह भावना नहीं रही । इसलिए मुझे एक टिप्पणी लिखनी पड़ी: 
जो रणनीतिकार ही बिक गया , वह कैसा रणनीतिकार? बेशक बिके नहीं पर आप किसी पार्टी के तो हो नहीं , फिर आपको किसी पार्टी के दर्द से क्या लेना देना ? आप अपना हिसाब लीजिए और चलिए किसी नये राज्य की ओर ।