कुछ हटकर और चुनौतीपूर्ण करने की चाहत से जुड़ी दिव्यांगों सेः डा0 शरणजीत कौर 

कुछ हटकर और चुनौतीपूर्ण करने की चाहत से जुड़ी दिव्यांगों सेः डा0 शरणजीत कौर 
डा0 शरणजीत कौर।

-कमलेश भारतीय 

समाज में कुछ हटकर और चुनौतीपूर्ण करने की चाहत से मैं दिव्यांगों से जुड़ी और फिर मेरी जिंदगी इनको मौके देने और इनकी सम्भावनाएँ संवारने में ही अर्पित हो गयी । यह कहना है हरियाणा श्रवण एवं वाणी निःशक्त जन कल्याण समिति, पंचकूला की उपाध्यक्ष एवं चेयरपर्सन डाॅ शरणजीत कौर का । वे हिसार की अनाज मंडी स्थित श्रवण व वाणी निःशक्त जन कल्याण केंद्र का निरीक्षण करने आई थीं। जिस उत्साह से वे इन बच्चों से मिल रही थी, उससे भी इनका समर्पण झलक रहा था। वहीँ  इन्होंने बच्चों के अभिभावकों को भी पूरे धैर्य के साथ सुना । यहीं पर डाॅ शरणजीत से उनके जीवन से संबंधित भी कुछ बात करने का अवसर प्राप्त हुआ ।

-आप मूल रूप से कहां की रहने वाली हैं
-वैसे तो पंजाब के अमृतसर से मेरे परिवार का संबंध है लेकिन हमारा जीवन गुहला चीका में बीता।
-आपकी पढ़ाई लिखाई कितनी और कहाँ हुई
-मेरी पढ़ाई लिखाई कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से हुई । मैंने मास्टर ऑफ सोशल वर्क में एम ए किया और उसके बाद बनारस से पीएचडी की ।
- आप इस समिति से कब और कैसे जुड़ीं ?
-मास्टर ऑफ सोशल वर्क करने के दौरान मेरी ट्रेनिंग करनाल के माता प्रकाश कौर श्रवण व वाणी सेंटर में हुई, दो माह तक,  बस उसी दौरान मुझे अपना लक्ष्य मिल गया और मैं इनके प्रति समर्पित हो गयी ।
-आपकी पहली जाॅब कहां रही ?
-करनाल के इसी सेंटर में प्रिन्सिपल के तौर पर सन् 1994 के मार्च से लेकर सन् 2017 मैने नौकरी की । इस दौरान मेरा कार्यक्षेत्र कभी गुरुग्राम तो कभी सिरसा, फिर हिसार में कुछ समय और रायपुररानी भी रहा  ।
-फिर आप उपाध्यक्ष पद पर कब से नामित हैं
-सन् 2017 से ।
-क्या क्या कर पाईं आप इन बच्चों के लिए 
-सबसे पहले तो मैं इस समिति के अध्यक्ष व हरियाणा के माननीय राज्यपाल महोदय व उपाध्यक्ष मुख्यमंत्री मनोहर लाल जी की दिल से आभारी हूं, जिनका सहयोग मिलने के चलते मैं पूरी तरह से इनके लिए (मुक व बधिर) काम कर पाई । आठ केंद्रों में हमने कोशिश की है कि सबसे पहला कदम  बधिर बच्चों को कम उम्र में ही चिन्हित,पहचान कर हमारे केंद्र तक लाया जाये। जिससे उनकी सही सीखने की उम्र में ही व्यवहारिक शिक्षा आरंभ हो सकें । दूसरे इन्हें मेडिकल सुविधा भी समय पर मिल सके । तीसरे ये समय पर भाषा सीख पायें । और इसके साथ हमने 2015 से प्रयास शुरू किया कि बधिर बच्चों के मामले पर इनके माता-पिता ही इनकी भाषा समझने में असमर्थ रहते है। लेकिन हमारी पहल के जरिए आज अनेकों माँ बाप ही सांकेतिक भाषा सीख चुके हैं, जिनका जिक्र माननीय प्रधानमंत्री जी ने आल इंडिया रेडियो पर 25 सिंतम्बर अपनी मन की बात में भी किया है ।
- आप अपने प्रयासों के बारे में कुछ और बताए, आप  इन 5 सालों में क्या  और कितना कर पाईं ?
-सब से विशेष कदम रहा अपने बधिर बच्चों को उनकी भाषा में शिक्षा देने का,  जिसके लिए मैने डिजीटल साइन भाषा लैब की स्थापना । पहली लैब वर्ष 2017 में गुरुग्राम केंद्र में स्थापित  की उसके बाद हिसार, पंचकूला, सोनीपत और करनाल में स्थापित कर दी हैं । आठ में से दो सेंटर प्लस टू तक हो गये जिनमें हिसार और करनाल शामिल हैं । रायपुररानी अभी पांचवीं तक ही है । और आज यहां सब केन्द्रों में साईन लैंग्वेज में पढ़ाई कराई जाती है।
-इन बच्चों की उच्चतर शिक्षा के लिए भी कोई डिप्लोमा है ?
-जी, बिल्कुल मैने बच्चों के भविष्य को मजबूत बनाने के मद्देनजर अपने मुख्यालय पर दो डिप्लोमा कोर्स शुरू किए । इस  कोर्स द्वारा बधिर शिक्षक तैयार किए जाएँगे। और साथ ही  Sign लैंग्वेज के Interpreter का भी कोर्स भी करवाया जा रहा है । माननीय प्रधानमंत्री जी की पहल पर केंद्र सरकार की तरफ से  वर्ष 2016 में इंडियन साइन लैंग्वेज रिसर्च सेंटर की स्थापना हुई और ये भारत में बधिर समुदाय के हितों के लिए भी काम आ रहा है । सबसे खुशी की बात कि महर्षि दयानंद विश्विद्यालय ने  बधिर  समुदाय को  सशक्त बनाने की पहल करते हुए सेंटर फॉर डिसएबिलिटी स्टूडैंट की स्थापना की और यहां दो कोर्सिज की शुरुआत की जिसमें इंटरप्रेटर और साइन कोर्स हैं । 
- आप नया क्या करने जा रही हैं ?
- मैं बधिर बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखती हूँ और उसी कड़ी में एक ऐसे कैफेटेरिया की शुरुआत करने जा रही हूं, जो पूर्ण रूप से बधिर लोगों द्वारा संचालित  होगा। और इसका नाम होगा Deafeteria जिसका उद्घाटन जल्द ही हमारे किसी एक सेंटर पर होगा।
- आप अपने परिवार के बारे में बताइए ।
-मेरे पति प्रो0 राजबीर सिंह महर्षि दयानंद विश्विद्यालय के कुलपति हैं । बेटी पद्मजया दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन कर रही है, वहीँ बेटा समरवीर सिह दिल्ली से ही बारहवीं की शिक्षा ले रहा है । 
-आपको अपने इस अनोखे सफर में, सबसे ज्यादा किसका प्रोत्साहन व सहयोग मिला
- सबसे पहले तो माननीय राज्यपाल जी, फिर मुख्यमंत्री हरियाणा  माननीय मनोहर लाल जी ने जो जिम्मेदारी मुझे सौंपी उसका तहेदिल से शुक्रिया ।  लेकिन मेरा जीवन यहां तक बहुत से लोगों के सहयोग बिना अधूरा है, जिनके साथ के बिना मैं अकेली कुछ न कर पाती। इसमें  मेरा परिवार, मेरे  जीवनसाथी- मेरे  पति प्रो0 राजबीर सिंह अहम् हैं। इसके  साथ  ही गुरुग्राम केंद्र में एस्सिसटेंट डायरेक्टर रहते तब उपायुक्त टी एल सत्य प्रकाश व उनके परिवार का बहुत सहयोग मिला । खुद उनके परिवार ने भी इनकी भाषा सीखी । सबसे ज्यादा पति प्रो0 राजबीर सिंह का जो इस सफर में मेरी ढाल बन कर हमेशा खड़े रहे । 
-कोई पुरस्कार 
-हमारी संस्था को पिछले 5 वर्ष में 30 राज्यस्तरीय तो पांच राष्ट्र स्तरीय पुरस्कार मिले । यह एक बड़ी उपलब्धि है ।
- आपका लक्ष्य क्या है 
-इन दिव्यागों को आईएएस और उच्च पदों पर स्थान तथा राजनीति में आने का अवसर मिले यह मेरी इच्छा है, सपना है । इन्हें समाज में बराबर की हैसियत से देखा जाये, बेचारे की हैसियत से नहीं । चैरिटी से लोगों का नजरिया दिव्यांगजन के लिए बदल कर सम्मान वाला होना चाहिए, बेचारगी किसी भी वर्ग की तरक्की का जरिया नहीं बन सकती।