समाचार विश्लेषण/बाबुल का भाजपा में कोई बाबुल न रहा 

समाचार विश्लेषण/बाबुल का भाजपा में कोई बाबुल न रहा 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय गायक बाबुल सुप्रियो ने आखिरकार बिग बी अमिताभ बच्चन की तर्ज पर राजनीति से संन्यास ले लिया । वैसे जो मज़ेदार किस्सा राजनीति में आने का बाबुल बताते आ रहे हैं , उसके मुताबिक वे हवाई जहाज में जा रहे थे कि उनकी सीट बाबा रामदेव के साथ आ गयी और बातों बातों में उन्हें भाजपा की टिकट दिलाने की कही और सचमुच बाबुल के बाबुल बन रामदेव ने टिकट दिला दी ।  अब उनकी तरह संन्यासी भी हो गये, कम से कम राजनीति में तो । आप बाबुल का अर्थ समझते होंगे यानी पिता । कितने गाने हैं जिनमें बाबुल का प्रयोग किया गया है । जैसे सबसे प्रचलित है के एल सहगल का गाया :
बाबुल मोरा पीहर छूटत जाये 
तो बाबुल का पीहर छूट गया और  बाबुल  के लिए अभी तक आगे नहीं  आया कोई कि मान जाओ । जब भाजपा अपने पैर पश्चिमी बंगाल में जमाने की कोशिश में थी तब बाबुल ने अपनी लोकप्रियता से पार्टी को बड़ा सहारा लगाया और सांसद भी बने । इस बार तो साहब ने खुश होकर केंद्र में राज्य मंत्री भी बना दिया था लेकिन साहब के सुर बदले तब जब बाबुल ने इस विधानसभा में बड़े आत्मविश्वास से विधायक का चुनाव लड़ा और हार गये । यहां से साहब नाराज हो गये और पहले की तरह बाबुल के बाबुल न रहे । यहां तक कि अभी सात जुलाई को मंत्रिमंडल से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया यानी एक गायक को पूरी तरह बेरोजगार कर कहा कि जाओ, अब आत्मनिर्भर हो जाओ । इस तरह बाबुल यह कहते हुए संन्यास ले गये :
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले 
वर्ना हम भी आदमी थे बड़े काम के ...

यह एक प्रकार से फिल्मी हस्तियों को सबक भी है । पहले यह सबक बिग बी ने लिया और अब बाबुल सुप्रियो ने । बल्कि शत्रुघ्न सिन्हा ने भी साहब से नाराज होकर भाजपा छोड़ दी क्योंकि उनको छोड़ कर स्मृति ईरानी और बाबुल सुप्रियो तक मंत्रिमंडल में ले लिये जो फ़िल्मी दुनिया में उनसे कहीं जूनियर थे । इसी तरह कभी सुनील दत्त की उपेक्षा कांग्रेस करती रही जो तीन तीन बार लगातार मुम्बई में चुनाव जीत कर आते रहे और उनको मात्र खेल राज्य मंत्री बनाया गया था । अपने बेटे संजय को बचाने के लिए बाबा ठाकरे की शरण में जाना पड़ा था । नगमा भी कितने साल तक कांग्रेस में शो पीस बनी रही । उर्मिला मातोंडकर भी कांग्रेस से शिवसेना में चली गयी। ये सब सबक हैं फिल्मी दुनिया के लोगों के लिए कि पार्टी कोई भी हो आपकी लोकप्रियता कैश करने के लिए लाती है बदले में आपको कुछ नहीं मिलने वाला । मिथुन चक्रवर्ती को ममता बनर्जी ने राज्यसभा तक पहुंचाया लेकिन वे पाला बदल कर भाजपा में चले गये । अब वे दीदी के गुस्से का शिकार हो रहे हैं । उनके दफ्तरों पर छापे मारे जा रहे हैं । अब वे पानी वाला सांप साबित हो रहे हैं । कोई डंक , कोई बयान नहीं दे रहे । खामोश हैं दीदी की कार्यवाही के बावजूद । इसी तरह बाबुल सुप्रियो की गाड़ी पर हमले हुए और अब डर है कि दीदी और गुस्से होंगी । इसलिए बाबुल ने राजनीति से संन्यास ही ले लिया और बिल्कुल साफ शब्दों में कहा कि किसी दूसरी पार्टी में भी नहीं जा रहा और न किसी पार्टी से ऑफर मिला है । बाबुल का यह भी कहना है कि बंगाल में पार्टी अध्यक्ष की उपेक्षा भी झेल रहे थे । इस तरह जीरो ग्राउंड लेवल से लेकर हाई लेवल तक वे पूरी तरह उपेक्षित होकर राजनीति और भाजपा को बाॅय बाॅय कर रहे हैं ।  वैसे अनुपम खेर का भी इन दिनों मोहभंग हुआ है साहब से । वे भी अब मुखरता से साहब के हक में नहीं बोलते । बाबुल को कोई मना लेगा या नहीं लेकिन फिल्मी दुनिया के लोगों को अपनी जगह दिखा दी है राजनीति ने कि 
हमारे अंगना में तुम्हारा 
क्या काम है ...