प्रेमचंद की वापसी (व्यंग्य )

प्रेमचंद की वापसी (व्यंग्य )

स्वर्ग में कई दिन से उथल -पुथल मची थी ।ऐसा पहली बार हुआ था कि स्वर्ग में किसी ने धरना दिया हो ।स्वर्ग में किसी ने अन्नजल त्याग दिया हो ।यमदूत ने आकर यमराज को बताया -“एक व्यक्ति स्वर्ग छोड़ कर पृथ्वी पर जाना चाहता है ।
यमराज ने हैरान हो कर पूछा -“स्वर्ग छोड़ कर कौन मूर्ख पृथ्वी पर जाना चाहता है ?नरक से जाना चाहे तो बात समझ में आती है ।”
यमदूत ने बड़े अदब से नाम लिया -“जी !महापुरुष प्रेमचंद ।”
यमराज अपने सिहाँसन से उठ खड़े हुए -“क्या ?मुंशी प्रेमचंद ?
लेखक प्रेमचंद ?
वही प्रेमचंद जिनकी अभी -अभी जयंती मनाई गई पृथ्वी पर ?”
“जी हजूर जी ।”यमदूत लगातार हाँ में सिर हिला रहा था ।
मगर यमराज को यक़ीन ही नहीं हो रहा था ।उन्होंने फिर पूछा “- कफ़न ,पूस की रात ,गोदान,निर्मला वाले प्रेमचंद ?
जी !जी !यमदूत ने और तेज़ी से सिर हिलाया ।
यमराज सोच में पड़ गए और बुदबुदाने लगे -“वह व्यक्ति जो मरने के इतने वर्ष बाद भी पृथ्वी पर लोगों के दिलों में ज़िंदा है ।जिसे आज भी विद्यार्थी स्कूल -कालेज में पढ़ते हैं।वह स्वर्ग छोड़ कर क्यों जाना चाहता है ?
यमराज ने कड़क आवाज़ में पूछा -“क्या स्वर्ग में उनका ध्यान अच्छे से नहीं रखा जा रहा ?
यमदूत ने झुककर जवाब दिया -“नहीं महाराज !उनका तो विशेष ध्यान रखा जाता है ।सभी उनका सम्मान करते हैं।”
यमदूत ने आगे क़िस्सा सुनाया -“वे कई दिन से जाने की बात कर रहे थे ।मगर लेखक विभाग के चेयरमैन उन्हें समझाते रहे ।आज तो उन्होंने हद कर दी ।उन्होंने अनशन शुरू कर दिया और धरने पर बैठ गए ।”
“क्या ???”यमराज के पाँव तले से जैसे आसमान खिसक गया हो ।उन्होंने आदेश दिया -“जल्दी मौसमी का रस लेकर आओ ।”
उन्होंने देख रखा था कि जब भी कोई नेता अनशन पर बैठता है तो मंत्री जी उसका अनशन मौसमी के रस से ही तुड़वाते हैं।वे बेचारे यही समझ रहे थे कि यह कोई प्रथा है ।कहीं दूध से अनशन तुड़वा कर कोई अपशगुन न हो जाए ।वे तुरंत प्रेमचंद के पास पहुँचे ।सभी सुविधाओं का निरीक्षण किया और बड़े प्यार से प्रेमचंद जी से पूछा -“क्या हुआ ?
आपको पृथ्वी की याद आ गई ?पृथ्वी पर तो आपका जीवन बड़े कष्ट में बीता था ।यहाँ तो आपको सभी सुविधाएँ प्राप्त हैं ।फिर आप जाने की बात क्यों कर रहे हैं ?”
प्रेमचंद ने यमराज को प्रणाम किया और कहा -“जी !इसी लिए तो जाना चाहता हूँ कि मेरा जीवन पृथ्वी पर कष्टमय व ग़रीबी पूर्ण रहा ।आज के लेखकों जैसा जीवन मैं भी जीना चाहता हूँ।मेरे मरने के बाद मुझे पहचान मिली ।इतना सम्मान मिला ।पर जीते जी क्या मिला ?मुझे जीते जी सम्मान प्राप्त करना है ।मुझे पृथ्वी पर ज़िंदा कीजिए ।”
यमराज नेबड़े प्यार से कहा -“आप यह जूस पीजिए ।अनशन तोड़िए ।हम यहीं आपका सम्मान करवा देते हैं ।”
प्रेमचंद आवेश में आ गए -“यहाँ सम्मान कौन देखेगा ?मुझे तो पृथ्वी पर लेखकों के बीच सम्मान करवाना है ।चमचमाते हुए सम्मान चिन्ह लेने हैं ।कंधों पर शाल डलवाना है ।फूल मालाएँ पहननी हैं ।पुष्पगुच्छ से स्वागत करवाना है ।मंच पर स्तुतिगान करवाना है ।जब भी इन आजकल के कवि -लेखकों को देखता हूँ,यह सब करते ,तो मुझे ईर्ष्या होती है ।मुझे मानसिक कष्ट होता है ।आप समझते नहीं ।”
यमराज कुछ कहते इससे पहले ही प्रेमचंद ने फिर कहा -“दस -पंद्रह अख़बारों में इनके सम्मान के चर्चे छपते हैं ।बड़ी -बड़ी तस्वीरें छपती हैं ।फिर ये लोग फ़ेसबुक पर ,वट्सऐप पर ये सब तस्वीरें डालते हैं ।जहाँ देखो वहाँ ये छाए रहते हैं । मुझे कुछ नहीं सुनना ।बस ! मुझे पृथ्वी पर जाना है ।”प्रेमचंद ने अपनी दो -टूक सुना दी ।
यमराज उन्हें अपने कक्ष में ले आए और उन्हें समझाने के लिए उन्होंने नारद मुनि को भी बुला लिया ।नारद मुनि का तो रोज़ का आना -जाना है पृथ्वी पर ।वे पृथ्वी के सारे भेद जानते हैं ।उन्होंने प्रेमचंद को समझाने के लिए राज़ की बात बताई -“ये कवि -लेखक सम्मान ,फूल मालाएँ,शाल पहने के लिए जुगाड़ लगाते हैं ।अन्यथा तुम्हारे बाद तुम्हारे जैसा लेखक कोई पृथ्वी पर पैदा नहीं हुआ ।”
प्रेमचंद ने विस्म्यपूर्वक नारद मुनि जी की ओर देखा और पूछा -जुगाड़ ?
क्या जुगाड़ ??
अब स्वर्ग में तो जुगाड़ है नहीं ।इसलिए यमराज ने नारद जी से कहा कि वे प्रेमचंद को अपने साथ पृथ्वी पर ले जाएँ और जुगाड़ का यथार्थ दिखाकर लाएँ ।उन्हें यह डर भी था कि कहीं प्रेमचंद पृथ्वी पर ही न रह जाएँ ।उन्होंने नारद जी को आगाह भी किया ।
नारद जी प्रेमचंद को लेकर पृथ्वी की ओर चल पड़े।वे सबसे पहले उस संस्थान में पहुँचे ,जहाँ लेखकों की पुस्तकों को ईनाम दिए जाते हैं।प्रेमचंद ने अपनी लेटेस्ट किताब दिखाई जो उन्होंने स्वर्ग में छपवाई थी ।प्रबन्धक ने उसे रिजेक्ट कर दिया ।क्योंकि उस पर स्वर्ग का पता था और वे तो केवल अपने शहर के लेखकों को ही ईनाम देते हैं ।उनके पास किसी बड़े व्यक्ति की सिफ़ारिश भी नहीं थी ।प्रेमचंद को पता चला, बड़े लोगों से साँठ -गाँठ होना बहुत ज़रूरी है ।प्रेमचंद जुगाड़ की प्रतीक्षा करने लगे ।नारद जी ने जुगाड़ लगाना चाहा पर लगा नहीं ।प्रेमचंद निराश हो गए ।नारद जी ने उन्हें समझाया -“आप उदास न हों ।पृथ्वी पर हज़ारों संस्थाएँ हैं।हर चौथा लेखक अपनी संस्था खोल कर बैठा है और अध्यक्ष बनकर वाह -वाही लूट रहा है ।”
वे एक अन्य संस्था की कार्यकारिणी कमेटी से मिलने पहुँचे ।नारद जी ने अपनी उपस्थिति का कारण बताया -“ये महान लेखक हैं ।इन्हें सम्मानित करवाना है ।पूरे शहर में इनके चर्चे होने चाहिए ।”
उन्होंने फूल माला ,पुष्पगुच्छ ,शाल ,स्मृति चिन्ह ,चाय -बिस्किट और अपना किराया जोड़ कर हिसाब उनके हाथ में पकड़ा दिया ।अब पैसे न नारद जी के पास और न प्रेमचंद जी के पास ।
बाहर निकलते ही प्रेमचंद ने प्रश्न किया -“हम क्या सम्मान ख़रीदेंगे ?मुझे नहीं चाहिए ऐसा सम्मान ।”
नारद जी एक और संस्थाधारी को जानते थे ।वे प्रेमचंद को समझा -बुझा कर उनके पास ले गए ।उनके पास दो -तीन पैसे वाले उद्योगपति भी थे ।जो अपने पैसे से सब प्रबन्ध कर देते थे ।उन्होंने पूछा -“आप विदेश से आए हैं?”
“नहीं ।”नारद जी ने सिर हिलाया ।
“क्या किसी उच्च पद पर हैं या रिटायर हुए हैं?”
“जी नहीं !”नारद जी ने फिर कहा।
Iकिसी नेता ,मंत्री ,अध्यक्ष के सम्बंधी हो ?
उन्होंने बताया -“केवल लेखक होने से कुछ नहीं होगा ।यदि हमें आपसे कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा तो हम आपको सम्मानित क्यों करेंगे ?”
प्रेमचंद को बात समझ में आ गई कि लेखक की प्रतिभा को कोई सम्मानित नहीं करता ।ये सब जुगाड़ हैं जिससे लेखक सम्मानित होते हैं।प्रेमचंद ने पूछा-“क्या आप क़लम को सम्मानित नहीं करते ?
उन्होंने ऐसे देखा ,जैसे किसी अबोध बालक को देख रहे हों और कहा -“जी !जब कभी हमें दिखाना हो कि हम निष्पक्ष रहकर सम्मानित करते हैं।केवल तब !”
प्रेमचंद ने नारद जी से लौटने को कहा ।वापस स्वर्ग पहुँच कर प्रेमचंद सीधे अपने कक्ष में चले गए ।द्वारपाल ने आकर यमराज को बताया -“प्रेमचंद ने सन्यास ले लिया और अपनी लेखनी को भी विराम दे दिया ।”
यमराज निश्चिन्त हो गए कि प्रेमचंद की वापसी हो गई ।

दलजीत कौर,
चंडीगढ़।