बच्चों की पढ़ाई में गैप रह गया तो मुश्किल होगी

पिछले दो वर्षों में स्कूली शिक्षा को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है, क्योंकि स्कूल बंद रहे और बच्चे पिछड़ते चले गए।

बच्चों की पढ़ाई में गैप रह गया तो मुश्किल होगी

पिछले दो वर्षों में स्कूली शिक्षा को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है, क्योंकि स्कूल बंद रहे और बच्चे पिछड़ते चले गए। हालत यह है कि पांचवीं के बच्चों को तीसरी कक्षा तक की भी जानकारी नहीं है। अब जब सब कुछ सामान्य हो रहा है, शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नए विचार सामने आने लगे हैं। ऐसी ही एक पहल है – नींव ऐप, जो कि भारतीय शिक्षा को सपोर्ट करने के लिए बनाया गया है। यह ऐप छात्रों के लिए ऑनलाइन शिक्षण सुलभ करता है; माता-पिता को  साथ लेकर चलता है, और शिक्षकों के काम को आसान करता है। स्पॉटले डॉट एआई की सह-संस्थापक तथा वाइज आउल की बोर्ड मैम्बर, रिमझिम रे बताती हैं कि उनकी पोर्टफोलियो कंपनी ने एक इंडिया एग्जाम पोर्टल लॉन्च किया है, जहां सभी राज्य सरकारें अपने स्कूल टैस्ट ऑनलाइन ले सकती हैं। सिक्किम के 25 हजार छात्रों ने नींव ऐप पर सेकेंडरी स्कूल की परीक्षा देने के लिए नामांकन किया है। यह एक क्रांति है क्योंकि अब माध्यमिक विद्यालय के छात्रों का मूल्यांकन ऑनलाइन परीक्षाओं के माध्यम से किया जा सकता है। इससे शिक्षकों को फटाफट विश्लेषण मिल जाता है, जिससे सुधार करने में सहूलियत होती है। इस पहल में ब्यास भौमिक और जोयाती बी का बहुत योगदान है।

 

दो साल के गैप से बच्चों की पढ़ाई बहुत पिछड़ गई है, जिसका समाधान लेकर आई हैं लखनऊ, यूपी की एक दूरदर्शी शिक्षाविद् डॉ सुनीता गांधी, जिन्होंने फटाफट सीखने के लिए अल्फा नामक एक चमत्कारी शिक्षा पद्धति प्रस्तुत की है, जोकि एक ग्लोबल ड्रीम टूलकिट का हिस्सा है। अल्फा प्रणाली का प्रदर्शन कुछ बच्चों ने हाल ही में दिल्ली में किया। पांच से सात साल आयु के नन्हें बच्चों ने जब हिंदी-अंग्रेजी के दैनिक अखबारों को फर्राटे से पढ़कर सुनाया तो दर्शक दंग रह गए। उन्होंने गणित का हुनर भी दिखाया। यह सब कलाकारी उन्होंने तीन महीने में सिर्फ 30 घंटे में सीख ली। इस पद्धति में, बच्चों को अक्षर या संख्याएं सिखाने के बजाए सीधे शब्द और वाक्य पढ़ने को दिए जाते हैं। अक्षरों को वे खुद ही समझ लेते हैं। अल्फा का प्रत्येक स्टडी मॉड्यूल खुद करके देखो के सिद्धांत पर आधारित है, जहां बच्चे स्वयं सीखते हैं और शिक्षक उन्हें पढ़ाते नहीं हैं, बल्कि बच्चों को सिर्फ प्रेरित करते हैं।

 

सार्वभौमिक साक्षरता और संख्यात्मकता एक सतत विकास लक्ष्य है। यूनिसेफ के अनुसार, शिक्षा का नुकसान हद से ज्यादा हो चुका है। डॉ. सुनीता गांधी, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, यूके से भौतिकी में पीएचडी कर चुकी हैं और विश्व बैंक में एक अर्थशास्त्री के रूप में काम कर चुकी हैं। वह कहती हैं, “शिक्षा में सबसे बड़ी समस्या स्पीड की होती है। आम धारणा है कि बच्चे को पढ़ने और बेसिक गणित सीखने में तीन साल लग जाते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं मानते। मैं तो कहती हूं कि बच्चे जब तेजी से सीखते हैं, तो इससे उनकी क्षमताओं का विस्तार होता है और नई संभावनाएं पैदा होती हैं। दुनिया अब वर्षों में नहीं, महीनों में साक्षर हो सकती है। शिक्षा एक ग्लोबल इमर्जेंसी है, जिस पर तत्काल एक्शन लेने की आवश्यकता है।" बच्चों की पढ़ाई में हुए नुकसान को सचमुच ही गंभीरता से लेने की जरूरत है, वरना यह गैप भविष्य में उन्हें परेशानी में डालेगा और अंतत: यह देश के लिए भी अच्छा नहीं होगा।

 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं।