समाचार विश्लेषण/राजनीति: सिद्धांत या महत्त्वाकांक्षा की?

समाचार विश्लेषण/राजनीति: सिद्धांत या महत्त्वाकांक्षा की?
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
राजनीति सिद्धांत की या महत्त्वाकांक्षा की ? कैसी राजनीति होनी चाहिए ? यह बात खुद नितिन गडकरी की कही हुई है कि मैं सिद्धांतों की राजनीति करता हूं न कि महत्त्वाकांक्षा की । फिर इन्हें भाजपा ने संसदीय बोर्ड से बाहर का रास्ता क्यों दिखा दिया ? क्योंकि वे भाजपा के कड़े आलोचक होते जा रहे थे । गडकरी तो यहां तक कह चुके कि कांग्रेस को मजबूत होना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत होना जरूरी है । कभी वे संघ के चहेते थे और दो दो बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये लेकिन जरा सी आलोचना भाजपा सहन न कर पाई और इन्हें संसदीय बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया । असल में नितिन गडकरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प बनने का सपना देखने लगे और यह बात कभी कोई  कैसे पसंद कर सकता है ? गडकरी ने तो यह भी कह दिया था कि अब जनसेवा करने का मन है और राजनीति से दूर होने यानी संन्यास लेने का तो उनकी इच्छा पूरी करने की तैयारी कर ली गयी है । सीधी सी बात यह कि कोई आलोचना करने वाला अब बर्दाश्त बाहर है । वैसे तो आजकल भाजपा नेता वरूण गांधी भी भाजपा के साथ होते हुए भी काफी मुखर हैं केन्द्र सरकार के फैसलों के खिलाफ । क्या उनको भी निशाने पर लिया जायेगा ? ये तो आने वाले दिन ही बतायेंगे लेकिन इतना अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि भाजपा में सब कुछ ठीकठाक नहीं है । जैसा दिखता है , वैसा तो नहीं है । दरारें आने लगी हैं ।
यह सिर्फ भाजपा में ही नहीं हो रहा । सभी राजनीतिक दल ऐसी स्थितियों से गुजर रहे हैं । कभी समाजवादी पार्टी में चाचा भतीजे में उठापटक हुई तो कभी चिराग पासवान की भी अपने चाचा से खूब बयानबाजी हुई । यह सब इतना सरल सहज हो गया है । वहां सत्ता नहीं थी , इसलिए ज्यादा चर्चा नहीं हुई । हरियाणा में इनेलो की टूट फूट भी इसी महत्त्वाकांक्षा और सिद्धांत की लड़ाई कही जा सकती है । महत्त्वाकांक्षाओं के चलते ही इनेलो से निकल जजपा बन गयी । ये महत्त्वाकांक्षाओं की बेल जितनी बढ़ती जाती है , उतने ही रिश्ते कमज़ोर होते जाते हैं । चाहे उत्तर प्रदेश की बात हो या फिर हरियाणा की । रिश्ते ताक पर रख दिये गये हैं और महत्त्वाकांक्षाओं को तरजीह दी जाने लगी है । आरोप पर आरोप लगाये जाते हैं और आधुनिक महाभारत सामने दिखने लगती है । हर कोई एक दूसरे की काट में लगा है । यही दस्तूर है । 
क्या नितिन गडकरी को बाहर निकलना कोई संकेत माना जाये कि भाजपा में बिखराव या विद्रोह शुरू  होने जा रहा है ? देखिए आने वाले दिन क्या दिखाते हैं ,,,,
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।