समाचार विश्लेषण/काशी विश्वनाथ और उत्तर प्रदेश के चुनाव 

समाचार विश्लेषण/काशी विश्वनाथ और उत्तर प्रदेश के चुनाव 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है बेशक उत्तराखंड जैसा राज्य निकल और बन जाने के बावजूद । उत्तर प्रदेश में पचासी लोकसभा सीटें हैं जो केंद्र में भाजपा की सरकार लाने में बड़ी भूमिका निभा चुकी हैं और आलम यह कि सिर्फ आपातकाल के बाद ही लोह महिला इंदिरा गांधी रायबरेली से हारी थीं और उसके बाद राहुल गांधी पिछले लोकसभा चुनाव में अमेठी से स्मृति ईरानी से हारे और कहा गया कि गढ़ जीत लिया और कांग्रेस दो से मात्र एक लोकसभा सीट पर ही विजयी रही जो रायबरेली में सोनिया गांधी की जीत थी । 
अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव आ रहे हैं । पहले वाराणसी में गंगा मैया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाया और अपना आशीर्वाद दिया । वाराणसी में लोकसभा चुनाव जीते और आसपास की कम से कम पच्चीस सीटों पर इनकी मौजूदगी ने असर डाला । अब काशी विश्वनाथ की शरण में आए हैं और इस बहाने हिंदू और हिंदुत्व की चर्चा को हवा दे दी है । पहले भी आपको याद रहे कि कब्रिस्तान और शमशान की चर्चा के बहाने निशाने साधे गये थे और गुजरात के गधे जैसे बेवकूफाना बयान अखिलेश ने देकर माहौल बिगाड़ लिया था । इस बार प्रधानमंत्री ने नयी बात कही कि जब जब औरंगजेब आता है तब तब उससे पहले शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं । बात वही है । अंदाज नया । तरीका नया । नयी बोतल में पुरानी शराब जैसे । कभी कहते हैं कि हम विकास की बात करते हैं, काम करते हैं तो वे बांटने की बात करते हैं । शब्दों का खेल चल रहा है । 
 इस बार लखीमपुर खीरी कांड और किसान आंदोलन से प्रधानमंत्री और भाजपा के अंदर एक डर है कि कहीं यह घटना और आंदोलन भारी न पड़ जाये । इसीलिए काशी विश्वनाथ की शरण में आए हैं । पहले अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा देकर विकास की चर्चा कर ली । फिर अयोध्या के राम मंदिर से भी बहुत आशायें हैं यानी राम जी भी और काशी विश्वनाथ सभी इस चुनाव में बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं । पहले मुस्लिम समाज को तीन तलाक़ से जीतने की कोशिश रही, खासकर मुस्लिम महिलाओं का दिल जीतने की । इस बार कांग्रेस की प्रियंका गांधी ने भी तीर छोड़ा है -चालीस प्रतिशत सीटें महिलाओं को दी जायेंगी और कि 'मैं लड़की हूं , लड़ सकती हूं ' नारा भी दिया । पूर्वांचल को साधने की कोशिश । मायावती ब्राह्मण समाज पर आस लगाये हैं तो अखिलेश भी निकल पड़े हैं अपने यादव व मुस्लिम वोट बैंक के सहारे । अभी सिर्फ जयंत और अखिलेश का गठबंधन सामने आया है । 
काशी विश्वनाथ के लोक अर्पण पर जिस प्रकार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने विज्ञापन के लिए सरकारी कोष की तिजोरी खोली है वह सवाल उठाती है कि आखिर इतनी विज्ञापनबाजी क्यों ? यही करोड़ों रुपये समाज के , प्रदेश के विकास पर खर्च क्यों नहीं किये गये ? समाचारपत्रों के पन्ने दर पन्ने भरे पड़े हैं । यह फर्क भी पता नहीं चलता कि खबर कहां है और विज्ञापन कहां है ? कभी दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली को अपने विज्ञापनों से रंग देते थे और आजकल पंजाब में कांग्रेस के मुख्यमंत्री चन्नी के विज्ञापन छाये हुए हैं । इतना पैसा किसलिए विज्ञापनबाजी पर खर्च किया जा रहा है ? क्या नेताओं को अपने कामों या विचारधारा पर विश्वास नहीं रहा ? चुनाव पर इतना ज़ोर और इतना शोर ? अपने कामों पर भरोसा रखिए न । कहीं ऐसा न हो जाये :
बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का 
मगर जब काटा तो कतरा ए खूं न निकला ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष , हरियाणा ग्रंथ अकादमी।