डॉक्टर नरेंद्र मोहन पर बोलना आसान भी और मुश्किल भी: प्रताप सहगल

देश की राजधनी दिल्ली में स्थित 'साहित्य अकादमी' के सभागार में 2अगस्त,2022 को आयोजित 'मेरे झरोके से' कार्यक्रम में प्रख्यात लेखक डॉ नरेंद्र मोहन पर उनके मित्र एवं अप्रतिम कवि, नाटककार, बाल साहित्यकार व आलोचक  प्रताप सहगल ने अपने विचार व्यक्त किए।

डॉक्टर नरेंद्र मोहन पर बोलना आसान भी और मुश्किल भी: प्रताप सहगल

(रिपोर्ट-विनोद पाराशर व सुमन पंडित)
देश की राजधनी दिल्ली में स्थित 'साहित्य अकादमी' के सभागार में 2अगस्त,2022 को आयोजित 'मेरे झरोके से' कार्यक्रम में प्रख्यात लेखक डॉ नरेंद्र मोहन पर उनके मित्र एवं अप्रतिम कवि, नाटककार, बाल साहित्यकार व आलोचक  प्रताप सहगल ने अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि उन पर बोलना आसान भी है और मुश्किल भी। उनसे मेरा रिश्ता लंबी कविता में मेरी रुचि के कारण शुरू हुआ था। क्योंकि उन्होंने लंबी कविता की रचना प्रक्रिया पर पहली पुस्तक संपादित की थी और मैं भी लंबी कविता लिख रहा था। उनसे निकटता तब और बढ़ गई जब वह मेरे पास ही आकर राजौरी गार्डन में रहने लगे। उनके या मेरे घर पर एक दूसरे की रचनाओं को सुनने और उनकी बेबाक आलोचना करने का सिलसिला शुरू हुआ।वह अपनी आलोचना पर कभी भी नाराज नहीं होते थे,बल्कि उसको गहराई से स्वीकार करके अपनी रचनाओं में बदलाव करते थे। 
उनकी कविताओं पर टिप्पणी करते हुए सहगल जी ने कहा कि उनकी कविता में 'दहशत' ,'हंसी' 'मुक्ति'और 'स्मृति'जैसे शब्द बार-बार आते हैं। उन्हें दहशत, बचपन में गिरने की वजह से, आवाज के चले जाने और 12 वर्ष की उम्र में विभाजन के कारण पैदा हुई थी,जो ता उम्र उनके साथ बनी रही।उनके नाटकों की चर्चा करते हुए, उन्होंने बताया कि वे नाटक की दुनिया में 1984 में आए। उनके नाटक अपने विषयों की विविधता के लिए याद किए जाते हैं। 'कहे कबीर' से लेकर 'मिस्टर जिन्ना' तक उनके सभी नाटक एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। उन्होंने उनके नाटकों पर विवाद की भी चर्चा की। उनकी जीवनी की चर्चा करते हुए कहा कि उनका पात्र 'निंदर' असल में उनका बचपन का नाम था। उन्होंने उनके विविधता पूर्ण लेखन के प्रति उनकी मेहनत और सीखने की प्रवृत्ति को प्रमुख बताया।
कार्यक्रम में उपस्थित कई प्रमुख लेखक प्रोफेसर सादिक, प्रोफेसर शाहिना तबस्सुम, सीमा जैन, अजय रोहिल्ला, वेद मित्रा शुक्ला,सुमन कुमार, अतुल कुमार, शशि सहगल हरी सुमन बिष्ट,उनकी पुत्री सुमन पंडित सहित व काफी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।उनमें से कुछ ने नरेंद्र मोहन से जुड़े अपने संक्षिप्त संस्मरण भी साझा किए।
उनकी पुत्री सुमन पंडित ने आए हुए सभी अतिथियों तथा साहित्य अकादमी का धन्यवाद करते हुए कहा कि आज के सार्थक संवाद से अनेकों स्मृतियाँ एक साथ उभर आई हैं।पिता के जाने के बाद,उनके लेखक से मेरी पहचान गहराई  है और लेखकीय बिरादरी से मेरा रिश्ता सघन हुआ है। लेखक मरा नहीं करते, नरेंद्र मोहन द्वारा 'मंटो की डायरी''मंटो जिंदा है' का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा मंटो जिंदा है और नरेंद्र मोहन भी जिंदा है-अपनी रचनाओं में और अपने पाठकों में।
प्रोफेसर सादिक ने डॉक्टर नरेंद्र मोहन के साथ अपनी घनिष्ठता का परिचय देते हुए 40 वर्षों के संबंधों का जिक्र किया और कहा कि  वह अपनी खुशियों  सभी को बहुत खुलेपन के साथ साझा करते थे। नरेंद्र मोहन जैसे दोस्त का अचानक चले जाना व्यक्तिगत तौर पर और साहित्यिक जगत के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।
डॉक्टर शाहिना तबस्सुम ने कहा कि किसी बड़ी शख्सियत,बड़े व्यक्तित्व पर, किसी एक जबान की इजारेदारी नहीं होती है।डॉक्टर नरेंद्र मोहन ने 'मंटो' को हिंदी जबान में हिंदी भाषियों के बेहद करीब लाने का काम किया,तो साइना जी ने उनके नाटक 'मिस्टर जिन्ना' और कई अन्य रचनाओं का उर्दू जबान में अनुवाद कर,उन्हें उर्दू जबान बोलने वालों के बीच पहुंचाया। 
प्रख्यात कवयित्री शशि सहगल ने डॉक्टर  नरेंद्र मोहन के जीवन में उनकी पत्नी अनुराधा के योगदान को बहुत आत्मीयता से रेखांकित किया।
डॉ रेखा व्यास ने कहा कि नरेंद्र मोहन विभिन्न विधाओं के धनी तथा बहुत आत्मीय व स्नेहसिक्त व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके आसपास आप हंसी-ठहाकों के बिना नहीं रह सकते।
प्रख्यात कहानीकार डॉ विवेक मिश्र ने कहा कि कहानियों को लेकर उनकी आलोचना दृष्टि बहुत मजबूत थी।वह पढ़ते थे, नए लेखकों की रचनाओं पर विस्तार से बात करते थे और उन्हें प्रोत्साहित भी करते थे।अपने समय से, अपने समकालीन लेखकों से जुड़ते थे और शायद इसलिए लेखक जिंदा रहता है क्योंकि वह केवल लिखता नहीं है बल्कि वह अपने समय से,  अपने समाज से ,अपने समय काल से जुड़ता है व उससे जूझता है।
 डॉ सीमा जैन ने,डॉक्टर नरेंद्र मोहन की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद करते वक्त उनकी कविताओं में झलकती विभाजन की त्रासदी,मानवीय संवेदना,राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्यों पर टिप्पणी का जिक्र किया।उनकी  कविता 'निंदर यहीं कहीं है'की अंतिम कुछ पंक्तियां, वहां मौजूद सभी लोगों की भावनाओं को व्यक्त कर रही थीं-
'लगता है 
निंदर कहीं नहीं गया 
वह तो बिखर गया है
खुशबू बनकर 
अपने शब्दों में! 
विचारों में समाकर
 घुल गया है
बस गया है
हवाओं में
फिजाओं में
यहीं कहीं तुम्हारे इर्द-गिर्द 
तुम्हारे आसपास!'

कार्यक्रम का संचालन अकादमी के संपादक (हिंदी अनुवाद) अनुपम तिवारी ने किया।इस कार्यक्रम में दिल्ली ही नहीं,दिल्ली से बाहर के राज्यों से भी 50 से भी अधिक साहित्यकार व मीडियाकर्मी उपस्थित थे।