बेहद आवश्यक न हो तो इस महीने सफर न करें

बेहद आवश्यक न हो तो इस महीने सफर न करें

भारत में कोरोना के मामले आंधी तूफान की रफ्तार से बढ़ रहे हैं। कई राज्यों ने तमाम तरह की बंदिशें लगा रखी हैं। यहां तक कि भारतीय निर्वाचन आयोग ने पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ऐहतियातन दिशा निर्देश जारी कर दिये हैं और सभी राजनीतिक दलों को डिजिटल माध्यमों से चुनाव प्रचार करने को कहा है। अभी तक यह एक बड़ा सवाल बना हुआ था कि एक ओर तो देश भर में पाबंदियां लग रही हैं, फिर उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा आदि राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए भीड़ क्यों लगायी जा रही हैं। देश के चार महानगरों में कोरोना के ट्रेंड का अध्ययन करने पर पता चला कि गत वर्ष मई माह में फैली दूसरी लहर में जिस तरह से ऑक्सीजन और हॉस्पिटल बैड्स की भारी कमी हो गयी थी, वैसा कुछ इस तीसरी लहर में देखने को नहीं मिल रहा। दिल्ली के अस्पतालों में 90 प्रतिशत से ज्यादा बेड खाली पड़े हैं। यह दूसरी बात है कि ओमिक्रॉन वायरस पिछले वाले डेल्टा वायरस के मुकाबले बहुत तेजी से फैलता है। चिकित्सकों का मानना है कि तीसरी लहर कुछेक हफ्ते तक ही रहेगी, फिर धीमी पड़ जायेगी। यानी इस दौरान यात्रा पर न निकला जाये तो बेहतर होगा।

ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) में न्यूरोसर्जरी के एक प्रोफेसर का कहना है कि देश में तेजी से बढ़ रहे कोविड मामले कुछ हफ्तों में घटने लगेंगे, लेकिन सावधानी बरतना जरूरी है। इसलिए अस्पतालों को हर तरह से तैयार रहने को कहा गया है। नया वेरिएंट सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में मिला था और अब वहां केस कम होने लगे हैं। साथ ही यह भी कि इस बार कोरोना के लक्षण बहुत ही हल्के मिल रहे हैं। इसीलिए न तो मरीजों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ रहा है और न ही किसी की मृत्यु हो रही है। ज्यादातर मरीजों को अपने घरों में ही आइसोलेशन में रहने की हिदायत दी जा रही है। यह एक शुभ संकेत है, परंतु इसका मतलब यह हर्गिज नहीं कि लापरवाही की जाये। नया वेरिएंट बहुत अधिक संक्रामक है। इसलिए मास्क पहन कर रहें, लोगों से सुरक्षित दूरी बना कर रखें, और अपने घरों से ही काम करें। ज्यादा जरूरी न हो तो बेवजह यात्रा न करें। सार्वजनिक सभाओं में न जायें और डिजिटल माध्यमों का अधिक प्रयोग करें।

एक पैनल डिस्कसन में पीजीआई चंडीगढ़ के पूर्व सलाहकार और जाने माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. एच के बाली ने कहा कि देश में ओमिक्रॉन के मामलों में अचानक वृद्धि होना चिंता की बात है। भले ही ओमिक्रॉन के लक्षण ज्यादा गंभीर नहीं हैं, लेकिन यदि इसका तुरंत समाधान नहीं किया गया तो यह अस्पतालों पर बोझ बन कर सिस्टम को ध्वस्त कर सकता है। एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि अधिकांश अस्पताल संकट से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं। महामारियों का जीवनकाल आमतौर पर ढाई से तीन साल का होता है और वे तब समाप्त होती हैं जब एक हल्का लेकिन अधिक संक्रामक वायरस घातक वायरस की जगह ले लेता है। वायरस कभी मरते नहीं और न ही समाप्त किये जा सकते हैं। हालांकि, इम्युनिटी बढ़ाकर रोग की गंभीरता को कम किया जा सकता है। कभी-कभी, एक म्यूटेटेड, अधिक खतरनाक वायरस फिर से प्रकट हो सकता है और दोबारा प्रकोप फैला सकता है।

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं