समाचार विश्लेषण/हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी तो ली है

समाचार विश्लेषण/हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी तो ली है
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
अरे यार वह गज़ल बहुत बुरी तरह याद आ रही है: हंगामा है क्यों बरपा 
थोड़ी सी तो पी है ...
और हम कहना चाहते हैं कि 
हंगामा है क्यों बरपा 
थोड़ी सी तो ली है ...
अरे यार साफ साफ बताओ न क्या ली है ? क्या पी है ? नहीं , नहीं ...पी बिल्कुल नहीं यार । बस ली है, ली है । और कुछ नहीं । बताओ तो सही भाई क्या ली है , ली है , लगा रखी है ?
यार । बस एच पी एस सी के एक अधिकारी ने थोड़ी सी रिश्वत ली है नौकरियां देने में , बताओ , इसी बात पे हंगामा मचा रखा है । यह कोई बात हुई ? सरकार अपनी हो तो चार पैसे न कमाये तो फिर क्या फायदा ? अब एक अधिकारी तो शहीद हो गया , बाकी कहां गये? एक अकेला तो चना फोड़ नहीं सकता भाई । जरूर ऊपर तक मिलीभगत रही होगी वर्ना इतनी हिम्मत कि एच पी एस सी के ऑफिस में ही खुलेआम नीलामी करने लग जाये ? यह नहीं हो सकता । बड़ी मुश्किल सी बात लगती है । अब विपक्ष देखो न इतनी सी बात पर हाथ धोकर सरकार के पीछे पड़ गया है । विधानसभा सत्र का आगाज ही नौकरियों की खरीद फरोख्त से शुरू किया । यह कोई बात है? आओ , कोई अच्छी बात करो । सरकार है तो घोटाले भी होंगे और सरकार है तो सब मुमकिन भी होगा । अब भेद खुल गया तो हंगामा हो गया । विधानसभा के बाहर युवा कांग्रेस ने मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के मुखौटे लगा कर और 'पैसे लाओ , नौकरी पाओ' के बैनर लगाकर प्रदर्शन किया और यह भी बैनर थे कि  'यहां नौकरियां बिकती हैं ' । इस तरह पूरा प्लान बना कर प्रदर्शन किया । कांग्रेस ने पहले से ही यह तैयारी कर रखी थी कि अंदर विधायक इस मुद्दे को उठायेंगे और बाहर युवा कांग्रेस हंगामा करेगी । वही हुआ बल्कि अंदर सदन में विश्वविद्यालयों की भर्तियों के नये नियमों पर भी उंगली उठाई गयी जबकि मुख्यमंत्री ने सफाई दी जिसे विपक्ष ने मानने से इंकार कर दिया ।
युवाओं की सरकारी नौकरी पाने की आशा पर इस कांड से कुटाराघात हुआ है और एच पी एस सी  की पोल खुल कर सामने आ गयी है जो बहुत दुखद है । सरकार घिरी है बुरी तरह । यह सोचना होगा कि सरकार युवाओं की आशाओं को कैसे बनाये रखे और युवाओं का विश्वास इन संस्थाओं में बनाये रखे । युवा वर्ग को मुख्यधारा में बनाये रखने के लिए योग्यता को वरीयता देना जरूरी है और विश्वद्यालयों की स्वायत्तता को अक्षुण्ण रखना भी जरूरी है । पहले ही विश्वविद्यालयों में अनुबंध के आधार पर ऐसी भर्तियां बड़ी संख्या में हो चुकी हैं कि एफ डी तोड़  कर ही स्टाफ को वेतन दिये जाने पर मजबूर हैं विश्विद्यालय । कहना न होगा ये अनुबंधित कर्मचारी सरकार के चहेते ही हैं और इनको किसी और जगह एडजस्ट किया जाये , विश्वविद्यालयों में नहीं । विद्या के मंदिरों को पावन ही रहने दीजिए , मेरी सरकार । बड़ी कृपा होगी ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष , हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।