गुजवि के प्रोफेसर ने संसद अधिकारियों को दिया 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: उपयोग और चुनौतियां' पर व्याख्यान
रोहतक, गिरीश सैनी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग देश की प्रगति और उन्नति के लिए हो रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सामग्री निर्माण की प्रक्रिया को सरल व तेज बन सकता है। विभिन्न तकनीक जैसे मशीन लर्निंग, डाटा एनालिसिस का उपयोग कर अनेक प्रकार की सामग्री जैसे लेख, वीडियो व चित्रों का उत्पादन किया जा सकता है । लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की कुछ नैतिक व कानूनी चुनौतियां भी हैं। इसके उपयोग में मौलिकता की कमी हो सकती है, और यह पहले से ही मौजूद सामग्री की नकल हो सकती है। ये बात नई दिल्ली में भारतीय संसद के उच्च अधिकारियों को संबोधित करते हुए गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विवि, हिसार के जनसंचार विभाग के प्रो. उमेश आर्य ने 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस : उपयोग व चुनौतियां' विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान में कहे।
संसद अधिकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि आज हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल अपने आधिकारिक कार्यों में भी करने लगे है। तकनीक हमारी रचनात्मकता को बढ़ावा देती है, लेकिन इसके उपयोग के समय इसके संभावित प्रभावों के बारे में भी विचार करना जरूरी है। प्रो आर्य ने सभी को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ जिम्मेदारी से काम करने की सलाह दी ताकि इसका लाभ उठाया जा सके। उन्होंने कहा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को इस्तेमाल करने की अपनी सीमाएं भी है, हमें इससे जुड़े जोखिम के बारे में भी सचेत रहना चाहिए। इससे जुड़ी हुई कुछ मौलिक व कानूनी चुनौतियां भी हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करते हुए हमें इसके दिशा निर्देशों का भी पता होना जरूरी है ताकि हम अच्छा कंटेंट बना सकते हैं।
प्रो उमेश आर्य ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया और आशा व्यक्त की कि इस विषय पर आगे भी चर्चा होती रहेगी। उन्होंने कहा कि संवाद और शिक्षा से ही हमें इस तेजी से बदलती तकनीकी युग में आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
Girish Saini 

