समाचार विश्लेषण /खाओ, पीओ, ऐश करो मित्रो 

यूं तो यह गाना बहुत लोकप्रिय है लेकिन इसे सच कर दिखाया है लंदन की एक महिला ने जिसने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट कर अपने अंतिम संस्कार में आने के कुछ नियम बताये हैं जो बहुत ही रोचक हैं ।

समाचार विश्लेषण /खाओ, पीओ, ऐश करो मित्रो 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
यूं तो यह गाना बहुत लोकप्रिय है लेकिन इसे सच कर दिखाया है लंदन की एक महिला ने जिसने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट कर अपने अंतिम संस्कार में आने के कुछ नियम बताये हैं जो बहुत ही रोचक हैं । इसीलिए ये पंक्तिया याद आ गयीं
-खाओ , पीओ , ऐश करो मित्रो 
दिल पर किसे दा दुखाइओ न ...
यह महिला तो इससे भी आगे निकल गयी है । जीते जी तो जीते जी मरने के बाद भी किसी का दिल दुखाना नहीं चाहती । मजेदार से नियम हैं कि मेरे अंतिम संस्कार में आने वालों को मेरा पुराना फोटो लाना होगा । मेरे ताबूत में मेकअप का सामान भी रखा जाये । हर किसी को च्यूंगम लाना होगा । ज्यादा से ज्यादा पांच मिनट की स्पीच कर सकते हो मेरे बारे में । काले कपड़ों में नहीं आना बल्कि रंग बिरंगे कपड़े पहन कर मेरे शोक में आइए । मेरे ताबूत में खाने के लिए एक प्लेट भी रखी जाये । और सबसे मजेदार शर्त कि हर किसी को दो पैग लगाकर जाना होगा । कोई इससे कम पीता है तो उसे घर चले जाना चाहिए । और इससे भी दिलचस्प कि बीस मिनट से ज्यादा रोना नहीं किसी को ।
है न मजेदार शर्तें ? अंतिम बेला तक खूब ऐश कीजिए । दो पैग फ्री लगाइए और बिना रोये , हंसते खेलते अपने घर जाइए । रंग बिरंगे कपड़े पहन कर आइए ताकि यह न लगे कि किसी के शोक से घर लौट रहे हैं । 
बेशक यह महिला बड़ा जीवन दर्शन दे गयी हैं । हम हिंदुस्तानी तो रोते रोते बेहाल हो जाते हैं । रूदाली तक को बुलाते हैं । काले या सफेद कपड़े ही पहनते हैं और मुंह लटका कर बैठे रहते हैं तेरह तेरह दिन । थोड़ी हंसी निकल जाये तो लोग बुरा मानते हैं कि देखो तो कैसे बेशर्म लोग हैं । घर में अभी सोग के दिन हैं और ये खिल खिल कर रहे हैं । वैसे तो जिंदगी की भागदौड़ में अब चार दिन में ही सारी रस्में पूरी की जाने लगी हैं । किसके पास इतना समय बचा है । सब भागते दौड़ते आते हैं और अपने अपने काम का रोना रोकर रस्म अदायगी कर भाग निकलते हैं । कहीं कहीं तो विदेश से बच्चे आ भी नहीं पाते । पड़ोसी ही सारी रस्में निभा देते हैं । हमारे दोआबा में तो यह आम बात हो चली । किसी के पास समय नहीं । इसीलिए सुरजीत पातर ने लिखा:
कुज्ज परतन गे जदों विदेशां तों
सेकनगे मां दे सिवे दी अगन
या बिरछां दी छां हेठ जा बैहनगे...
यही हाल है । यही सच है ।
हमारे पूर्वज मान कर चलते हैं कि पुनर्जन्म है और यदि यह सच है तो सिर रोना धोना कैसा ? नया जन्म होने ही वाला है । नयी जिंदगी मिलने ही वाली है । पिरामिड ऐसी ही कल्पना से बनवाये गये और यह महिला भी मेकअप का सामान और खाने की प्लेट साथ ही चाहती है ताबूत में । अपने लिए तो इतना ही लेकिन सबको दो दो पैग पिलाने की व्यवस्था भी करके जा रही है तो मित्रो 
खाओ , पिओ , ऐश करो ।
रोने धोने से क्या होगा ...?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।