कोरोना: कुछ ऐसा भी करो न 

प्रसिद्ध पत्रकार कमलेश भारतीय की कलम से -

कोरोना: कुछ ऐसा भी करो न 
लेखक।

हररोज़ देखता हूं कि लोग कोरोना का समय कैसे बिता रहे हैं । अखबार भरे पड़े हैं कि हम क्या क्या कर रहे हैं या क्या क्या करना चाहिए । जो कर रहे हैं वह भी अच्छा ही है । समय बिताने के लिए कुछ तो करना ही है । कोई पेंटिंग, कोई डांस तो कोई खाने की रेसीपी बता रहा है । कोई मेरी तरह साहित्य सागर में डूबा गोते लगा रहा है । प्रवासी मजदूरों के लिए हर राज्य के हर जिले में प्रबंध किए गये हैं शैल्टर होम्ज बना कर । जींद में तो उदास प्रवासी मजदूरों नै खाना तक खाने से मना कर दिया था लेकिन एक राजस्थान का सीकर है जहां स्कूल के शैल्टर होम में समय बिता रहे प्रवासी मजदूरों ने नयी मिसाल पेश कर दी । कैसे ? उन्होंने सरपंच को विनती की कि हम मजदूर लोग हैं । मेहनतकश ।  मेहनत मजदूरी करके ही खाते हैं और वही हमें अच्छा लगता है । हम कुछ कर्ज उतारना चाहते हैं इस गांव का । आपकी मेहमाननवाजी या खातेदारी का ।  इस तरह सिर्फ रोटी नहीं खा सकते । बातचीत में हल निकल आया कि हम पेंटर लोग हैं । यदि आप हमें पेट्स ला दो तो हम खाली न बैठ कर इस स्कूल को ही चमका दें । सरपंच ने गांव में बात की और एक लाख रुपये इकट्ठे किए जिनसे पेंट्स खरीद कर दे दिए । अब तक वे स्कूल के दो बरामदे पेंट कर चुके हैं । यानी कर्ज उतार रहे हैं । हिसार की उपायुक्त डाॅ प्रियंका सोनी से पिछले दिनों बात हुई थी इन्हीं प्रवासी मजदूरों के बारे में । उन्होंने बताया था कि ये मजदूर खाली या बोर महसूस न करें , इसलिए इनके लिए प्लम्बर, कारपेंटरी, इलेक्ट्रिशियन और टेलरिंग सिखाने का इंतजाम किया है । यह भी एक अच्छा आइडिया है । जब कोरोना का यह अज्ञातवास निकल जायेगा तो सीकर के स्कूल के बच्चे अपने भवन को सुंदर देख कर इन मजदूरों को याद करेंगे और यदि हिसार के प्रवासी मजदूर कुछ नया सीख गये तो वे उपायुक्त प्रियंका सोनी की सूझ को सराहेंगे । हो सकता है कि उनके काम की दिशा ही बदल जाये ? यह बहुत खूबसूरत बात होगी । इसी के साथ यह भी उल्लेखनीय है कि आठ साल की बच्ची ने जब पापा से पूछा कि लोग भूखे क्यों हैं तो पापा ने क्या किया  ? पापा ने एक ट्राली भर गेहूं दिन कर दिया । यह बात मंदसौर से सामने आई है । ऐसी बच्ची को सैल्यूट जिसने पापा के अंदर इंसानियत और फर्ज को जगा दिया । पापा ने किसानों से आह्वान भी किया कि किसान एक क्विंटल गेहूं में से एक किलो गेहूं दान करें । यह भी अच्छा है । जब बरसों पहले पंजाब में अपने छोटे से गांव में मैं फसल निकालने के दिनों में देखरेख के लिए मौजूद रहता तो देखता कि छोटे छोटे परिवार के लोग थैलियां या टीन के कनस्तर लेकर बैठे रहते और फसल निकलवाने में मदद भी करते । फसल निकलते ही हमारा पारिवारिक सदस्य की तरह वृद्ध नौकर भगतराम सबको भरपूर अनाज देने को कहता । इस तरह गरीब आदमी साल भर का अनाज इकट्ठा कर लेते थे । इस बार तो किसान को कटाई ही खुद करनी पड़ी तो प्रवासी मजदूरों या गांव के ही लोगों को अनाज के संकट का सामना तो करना ही पड़ेगा । ज़रा इस और भी सोचिए ।