मन की तरंगों से जुड़े तार

जब कोई साधक सुबह पांच बजे पूरी निष्ठा से ध्यान करता है, तो उसकी शांति ब्रह्मांड में तरंगों की तरह फैलती है। उसके मन को भले ही अकेलेपन का अहसास होता हो, पर आत्मा जानती है कि वह एक विशाल समूह का हिस्सा है।

मन की तरंगों से जुड़े तार
लेखक।

नरविजय यादव

 

खुशियां अपनी एक रहस्यमयी लय में चलती हैं। समय के साथ रूप बदलती हैं। शहरों और दिलों के बीच यात्रा करती हैं, और उन लोगों को फिर से जोड़ देती हैं जिनके रास्ते किसी अदृश्य कारण से कभी मिले थे। मेरी अपनी कहानी भी इसी तरह शुरू हुई, “5एएम ब्लिस” समूह बनने से बहुत पहले, एक फीचर फिल्म से। साल 2010 में मैं एक पंजाबी फिल्म “खुशियां” के प्रमोशन में जुटा था। इसके निर्देशक त्रिलोक मलिक, न्यूयॉर्क की एक एमी अवॉर्ड नॉमिनेटेड फिल्मी हस्ती हैं। यह एक पेशेवर संबंध था, पर फिल्म का नाम मेरे भीतर कहीं गूंजता रहा। खुशियां, मानो आनंद का एक बीज मेरी चेतना में बो गई, जो सालों बाद एक नए रूप में खिला, ब्लिस के रूप में।

 

त्रिलोक मलिक से संपर्क बना रहा। 2020 की शुरुआत में उन्होंने मुझे खजुराहो में होने वाली हैपी योगा कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किया। फ्लाइट बुक हो गई, सारी तैयारी पूरी थी। लेकिन भीतर से एक आवाज़ आई - “ठहरो।” दुनिया बदलने लगी थी। मैंने उस संकेत को सुना और यात्रा रद्द कर दी। कुछ ही दिनों में लॉकडाउन शुरू हो गया। बाद में लगा, वह रद्द की गई उड़ान एक मोड़ थी, नुकसान नहीं। शायद ब्रह्मांड मुझे बता रहा था कि मेरी खुशियों की यात्रा खजुराहो से नहीं, मौन से शुरू होगी।

 

फिर आया “5एएम ब्लिस” समूह - एक छोटा-सा ध्यान और सजगता का सर्कल, जो धीरे-धीरे ऊर्जा के जीवंत इकोसिस्टम में बदलता गया। कलाकार, डॉक्टर, शिक्षक, चिंतक - सब बिना प्रचार के, केवल ऊर्जा के कंपन से जुड़ते चले गए। इनमें दो लोग इस कहानी के प्रतीक बने।

 

पहले, वही त्रिलोक मलिक, जिन्होंने दशक भर बाद न्यूयॉर्क से 5एएम ब्लिस जॉइन किया। जो कभी पर्दे पर खुशी के दृश्य रचते थे, अब वास्तविक जीवन में सामूहिक ध्यान का हिस्सा बन चुके थे। दूसरे, मेरे पुराने सहपाठी डॉ. अनिल कुमार, जो मेरठ के प्रसिद्ध पेट रोग विशेषज्ञ हैं। हम सत्तर के दशक में बदायूं में साथ पढ़े थे। दोनों प्रथम श्रेणी के विद्यार्थी थे। उनकी लिखावट इतनी सुंदर और समान थी कि मशीन से टाइप की हुई लगती थी। मैंने उनकी टैकनीक अपनाई और लिखावट की वे समानता दोस्ती में बदल गई। समय बीतता गया, संपर्क छूट गया। लेकिन पैंतालीस साल बाद उनका संदेश आया, “मैं 5एएम ब्लिस समूह से शांति और प्रेरणा ले रहा हूं, चुपचाप।”

 

इस एक पंक्ति में बहुत कुछ छिपा था। हर कोई बोलता नहीं; कुछ बस देखते हैं। पर उनका मौन भी साधना का हिस्सा होता है। जैसे सड़क किनारे खिला फूल नहीं जानता कि कितने राहगीर उसकी सुंदरता को निहारते हैं, वैसे ही ब्लिस ऊर्जा को महसूस करने वाले भी अनेक हैं, जो बिना शोर किए बस जुड़ जाते हैं। हर सुबह जब कोई साधक ध्यान में बैठता है या केवल उस माहौल को पढ़ता है, तो वह भी उसी अदृश्य ताल में शामिल होता है।

 

ब्लिस का दर्शन कहता है- मौन खालीपन नहीं, ऊंची तरंगों पर संवाद है। यह वह बिंदु है जहां व्यक्तिगत विकास सामूहिक उपचार से जुड़ जाता है। मुझे आज भी एक डॉक्टर की बात याद है, जो आईसीयू से निकलने के बाद बोली थीं, “आप बहुत ध्यान देने वाले और सहयोगी मरीज थे।” निरीक्षण की वो आदत अब जीवन का स्थाई गुण बन चुकी है। अवलोकन ही वह पुल है जो हमें सत्य से जोड़ता है, बिना किसी बहस के।

 

आज की दुनिया में जहां सफलता की गूंज को ही महत्व दिया जाता है, वहां असली परिवर्तन हमेशा शांति में जन्म लेता है। जैसे फूल अपनी महक के लिए प्रचार नहीं करता, सच्चा साधक भी अपनी प्रगति की घोषणा नहीं करता। “खुशियां” से ब्लिस तक की यह यात्रा सिखाती है कि सुख को मंच नहीं, सजगता चाहिए। जब हम सब मिलकर एक ही मौन में बैठते हैं, तो एक अदृश्य संगीत बजने लगता है, जहां हर व्यक्ति एक साथ फूल भी है और उसका प्रशंसक भी।

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नरविजय यादव वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं।

(विचार व्यक्तिगत हैं।)