आओ अपने अंदर के कृष्ण को जगायें

आओ अपने अंदर के कृष्ण को जगायें
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
कृष्ण के बारे में बचपन में जानना शुरू किया जब गीता प्रेस , गोरखपुर से प्रकाशित बहुत सुंदर , ग्लेज पन्नों पर रंगीन कहानियां मेरा एक सहपाठी  शरत अपने बैग में लाया करता । कितनी तरह की कहानियां और हम क्लास में या आधी छुट्टी में देखा करते  । उन कहानियों में भी अनेक रूप थे और आज भी बहुरूप हैं कृष्ण के । मैं  वृंदावन और मथुरा भी गया और अनेक मंदिर देखे अनगिनत पर संदेश क्या ? पर कहीं भी कोई शोध केंद्र नहीं था सिर्फ वही कथाएं सुनने को मिलीं या भव्य मंदिर । कितने विविध रूप थे कृष्ण के ,,,गाय से प्रेम, नटखट , बांसुरी वादक , राधा का निष्पाप प्रेमी और अत्याचारी मामा कंस को धराशायी करने वाला युवक ।   जाने कितने रूप और फिर महाभारत का सूत्रधार । द्वारिकाधीश । और अंत एक बहेलिए के पांव में लगे तीर से अभिशाप जो था गांधारी का ।
आज जब विचार करता हूं तो सोचता हूं जिस बच्चे का जन्म ही कारागार में  भयानक वातावरण में हुआ हो और जिसके प्राण बचाने के लिए पिता को उफनती यमुना नदी पार करनी पड़ी हो , वह बालक बड़ा होकर दूसरे बच्चों से अलग कैसे न होता ? फिर कितने ही संघर्ष करने पड़े हों अपने ही नहीं बल्कि अपने गांव को बचाने के लिए । क्या अकेले कृष्ण यह काम कर सकते थे ? नहीं । पूरी मित्र मंडली ने साथ दिया । फिर भी हम उन्हें महामानव या भगवान् साबित क्यों करने में लगे रहते हैं ? आखिर कृष्ण ने जन्म लिया था और वे एक मानव की तरह इस धरती से विदा भी हुए । बड़ी बात कृष्ण में नेतृत्व के गुण थे । अपने गांव का , अपने लोगों का , अपने साथियों का खूब नेतृत्व किया । फिर चाहे कालिया मर्दन हो या गोवर्धन पर्वत को उठा लेने का करिश्मा हो । पशुओं से , जीवों से , प्रकृति से प्रेम का संदेश देते हैं कृष्ण जब तक गांव रहते हैं । जो आज भी बहुत समसामयिक संदेश है । जब हम प्रकृति से दूर गये बल्कि प्रकृति का दोहन शुरू किया तभी तो कोरोना के समय ऑक्सीजन की कमी आई । प्रकृति का दोहन बंद करने का संदेश आज भी है ।
कंस एक बुराई का नाम और पात्र जैसे हमारी फिल्मों में खलनायक । राज-पाट के लिए , अपने प्राणों के लिए सगी बहन को ही जेल में डाले रखा जब तक कि कृष्ण ने मुक्ति नहीं दिलाई । आततायी कैसे भी हों , कितने ही बाहुबली हों , उन्हें एक दिन कोई न कोई कृष्ण मिल ही जाता है । इसीलिए यह श्लोक है -यदा यदा हि धर्मस्य ,,,,जब जब जुल्म की , अत्याचार की इंतहा होती है तब तब कोई कृष्ण जैसा व्यक्ति आगे आता है और अत्याचार व अत्याचारी का अंत करता है । 
गीता संदेश की देश विदेश में बड़ी धूम है । स्वामी विवंकानंद ने कहा भी था जब सभी धार्मिक ग्रंथों के नीचे गीता रखी गयी थी कि यदि इसको नीचे से हटा लें तो बाकी सब ग्रंथ गिर जायेंगे क्योंकि यह सभी ग्रंथों का सार है । गीता का सबसे बड़ा संदेश यह है कि यदि आप पर अन्याय करने वाला, जुल्म करने वाला कोई अपना भी है तो पीछे न हटो । कुरुक्षेत्र के महाभारत में जब अर्जुन सामने देखता है अपने गुरुजनों व सगे संबंधियों को तब वह विचलित हो जाता है कि मैं इनसे युद्ध नहीं करूंगा तब कृष्ण जो समझाते हैं कि ये इस योग्य नहीं । जो आपका हक देने को तैयार नहीं और जिन्होंने कभी द्रौपदी चीरहरण तो कभी लाक्षागृह जैसे घिनौने कांड किये हों , वे इसी योग्य हैं  कि उनका सर्वनाश किया जाये । यह भी बहुत बड़ा संदेश है कि यदि आप अन्याय होते हुए देखते रहते हैं तो आप भी उस पाप में भागीदार हैं । इसी प्रकार शिशुपाल बध का संदेश यह है कि पहले पूरा अवसर दें सुधरने का यानी सौ गाली तक सुन लें । ऐसी सहनशीलता,,,गजब और जब न माने तो सुदर्शन चक्कर यानी अपनी पूरी ताकत लगा दें । कृष्ण सुदामा की दोस्ती अनुपम उदाहरण कि कोई छोटा बड़ा नहीं दोस्ती में । सभी बराबर । थोड़े से चावल भी अनमोल उपहार । राज-पाट में भूले नहीं सुदामा को । और राधा से प्रेम ऐसा उदाहरण कि स्त्री पुरूष में भी दोस्ती हो सकती है बल्कि निभ सकती है ।
हमारे समाज में यही हो रहा है कि हम सब देखते हैं लेकिन आगे बढ़ कर विरोध नहीं करते । हमारी ही आंखों के सामने लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार होता है और हम आंख मूंदे रहते हैं । हमारी ही आंखों के सामने कितने अत्याचार किये जा रहे होते हैं और हम मूकदर्शक बने रहते हैं । क्यों ? यदि हम यह भाव छोड़ दें कि हमें क्या लेना देना तो बहुत सारे अपराध बिना प्रशासन या पुलिस कार्यवाही के ही खत्म हो जायें । 
असल में हम सब के अंदर कृष्ण है । कहा भी है कृष्ण ने कि मैं सबमें हूं और सब मुझमें हैं । फिर डर कैसा और दूरी कैसी ? वह जो हम सब में समाया है उसकी तरह व्यवहार करें -सामूहिक संघर्ष करें , प्रकृति से प्रेम करें, अन्याय से लड़ें और अपने पुरखों की रक्षा करें । द्रौपदी जैसे चीरहरण को रोकें । सिर्फ मोमबत्ती के साथ प्रदर्शन काफी नहीं । समाज में जगह जगह कंस मौजूद हैं , आइए हम कृष्ण बनें बजाय किसी मुरली वाले की इंतज़ार करते रहें । हमारे ही अंदर है वह दैवीय शक्ति । बस उसे कृष्ण की तरह जगाने की जरूरत है । आइए । इस कृष्ण जन्माष्टमी पर इसे जगायें।  अपने अंदर के कृष्ण को । 
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।