साहित्यिकता से लबरेज़ है नया सिनेमा

वेब सीरीज से फिल्मों को नुकसान नहीं; हिंदी विभाग द्वारा सिनेमा और साहित्य पर वेब - संवाद

साहित्यिकता से लबरेज़ है नया सिनेमा

पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के कही अनकही विचार मंच की ओर से आज वेब - संवाद का आयोजन किया गया। इस वेब - संवाद में देवघर (झारखंड )से प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक व युवा आलोचक डॉ. राहुल सिंह मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए। उन्होंने 'सिनेमा और साहित्य' पर बोलते हुए कहा कि सिनेमा और साहित्य में समानताएं और विभिन्नताएं होते हुए भी दोनों ही कला रूप हैं। उन्होंने कहा कि सिनेमा में साहित्यिकता को केवल किसी साहित्यिक कृति के आधार पर परिभाषित नहीं करना चाहिए। उदाहरण के लिए पीपली लाइव, मसान, लंच बॉक्स जैसी फिल्में किसी कृति पर नहीं बनी लेकिन वह साहित्यिकता से लबरेज हैं। उन्होंने विश्व, हिंदी व भारतीय भाषाओं की फिल्मों के कई उदाहरण देते हुए बताया कि नई पीढ़ी के फिल्मकार छोटे - छोटे प्रकरणों में भी साहित्यिकता, संवेदनशीलता व कल्पनाशीलता का भरपूर प्रदर्शन करने में सफल रहे हैं। उन्होंने आज के दौर में कम लागत से बनने वाली फिल्मों के टिके रहने, ओटीटी प्लेटफॉर्म और विभिन्न प्रदेशों में फिल्म सिटी के निर्माण की चर्चा करते हुए कहा कि इन सब से उम्मीद जगती है कि साहित्य सिनेमा में पहले से अधिक अभिव्यक्ति पा सकेगा। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने स्वीकार किया कि खासकर हिंदी साहित्य में सिनेमा के अध्ययन को गंभीरता से नहीं लिया जाता, भले ही हमारे यहां सिनेमा और साहित्य के अंतर्संबंधों की एक लंबी परंपरा मिलती है। इस संदर्भ में उन्होंने सारा आकाश, शतरंज के खिलाड़ी, तीसरी कसम, रजनीगंधा, मौसम, सूरज का सातवां घोड़ा, तमस, हजार चौरासी की मां जैसी अनेक फिल्मों को उद्धृत किया। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वेब सीरीज से टीवी के धारावाहिक को तो नुकसान हो सकता है लेकिन इससे सिनेमा को नुकसान नहीं होगा।

विभागाध्यक्ष डॉ. गुरमीत सिंह ने डॉ. राहुल सिंह का स्वागत करते हुए कहा कि सिनेमा अध्ययन अपने आप में गंभीर कार्य है और इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने से  विद्यार्थियों में साहित्य के प्रति रुचि बढ़ सकती है।

आज के कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से शोधार्थी एवं प्राध्यापकों सहित 50 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिनमें विभाग के प्रो. सत्यपाल सहगल, यूएसओएल से डॉ. राजेश जायसवाल, प्रो. सुखदेव सिंह मिन्हास, तिरुपति से प्रो. राम प्रकाश, पटियाला से शगनप्रीत कौर, प्रयागराज से डॉ. ज्ञानेन्द्र शुक्ल और डॉ. प्रशांत मिश्रा शामिल रहे।