वाहनों के हॉर्न बेवजह नहीं बजाए जाने चाहिए

पिछले दिनों चर्चा थी कि केंद्रीय परिवहन मंत्रालय एक ऐसा कानून लाने की तैयारी कर रहा है जिसके तहत मोटर हॉर्न से सिर्फ भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों की आवाजें सुनाई देंगी। फिर सड़कों पर बांसुरी, तबला, वायलिन, माउथ ऑर्गन व हारमोनियम का सुखद संगीत सुनाई देगा।

वाहनों के हॉर्न बेवजह नहीं बजाए जाने चाहिए

पिछले दिनों चर्चा थी कि केंद्रीय परिवहन मंत्रालय एक ऐसा कानून लाने की तैयारी कर रहा है जिसके तहत मोटर हॉर्न से सिर्फ भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों की आवाजें सुनाई देंगी। फिर सड़कों पर बांसुरी, तबला, वायलिन, माउथ ऑर्गन व हारमोनियम का सुखद संगीत सुनाई देगा। एम्बुलेंस और पुलिस की जीप से तीखे सायरन की जगह आकाशवाणी पर सुबह-सुबह बजने वाली मनमोहक धुन सुनाई देगी। भले ही दिलचस्प लगे, लेकिन यह एक अजीब सा विचार है, क्योंकि हॉर्न का मुख्य काम आसपास वालों को सचेत करना होता है, न कि इतना मनोरंजन कर देना कि लोग मुड़-मुड़ कर देखने लगें और भूल ही जाएं कि उन्हें साइड से हटना है या सामने वाले वाहन को रास्ता देना है। यह भी एक सच है कि राजमार्गों पर और शहरों में तेज हॉर्न बजाने का चलन इतना ज्यादा हो गया है कि सिर चकराता है। तेज हॉर्न के साथ तेज स्पीड से चलने पर दुर्घटनाएं होना स्वाभाविक है।

भारत में हर साल 5 लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें करीब डेढ़ लाख लोग मारे जाते हैं और लाखों लोग घायल होते हैं सो अलग। दुर्घटनाओं के कारण भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का तीन प्रतिशत हिस्सा खो देता है। शोर से उत्पन्न तनाव को कम करने के लिए ही सड़क परिवहन मंत्रालय इस समस्या पर सोच-विचार कर रहा है। तेज हॉर्न बजाने वालों पर अथवा अनावश्यक रूप से हॉर्न बजाकर शोर करने वालों पर कानूनी सख्ती होनी चाहिए। इस बारे में निरंतर जागरूकता भी जरूरी है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि आठ घंटे तक 93 डेसिबल से अधिक शोर के बीच रहने से सुनने की क्षमता कम हो सकती है। हॉर्न के शोर से चिड़चिड़ेपन के अलावा सुनने की शक्ति खत्म हो सकती है। यूरोपीय देशों में वाहनों के हॉर्न की शोर सीमा 87 से 112 डेसिबल है। ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में, ऐसे शोर की सीमा 104 डेसिबल है। दिल्ली, चंडीगढ़ सहित महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कई शहरों में मल्टी-टोन हॉर्न पर प्रतिबंध है।

इंग्लैंड के ओलिवर लुकास ने 1910 में एक इलेक्ट्रिक कार हॉर्न तैयार किया था। आज भी कारों के हॉर्न बिजली से चलते हैं। ये एक फ्लैट गोलाकार स्टील डायाफ्राम द्वारा संचालित होते हैं, जिस पर एक दिशा में इलेक्ट्रोमैग्नेट काम करती है, जबकि एक स्प्रिंग उसे विपरीत दिशा में खींचता है। डायाफ्राम बार-बार विद्युत चुंबक के प्रवाह को बाधित करता है, जिससे प्रति सेकंड सैकड़ों बार सर्किट टूटता है और बजर या बिजली की घंटी जैसी तेज आवाज पैदा होती है। कार के हॉर्न का साउंड लेवल लगभग 109 डेसिबल होता है और वे आम तौर पर पांच-छह एम्पीयर करंट खींचते हैं। ट्रकों के पीछे तीन शब्द अक्सर दिख जाते हैं - हॉर्न ओके प्लीज। यह नजारा पूरे देश में देखने को मिलता है। इसका मतलब क्या होता है और किसने सबसे पहले इसे लिखा, यह किसी को नहीं मालूम। एक थ्योरी कहती है कि दूसरे विश्व युद्ध के समय जब डीजल की किल्लत हो गयी, तब मिट्‌टी के तेल से चलाने पड़ गये ट्रक। सुरक्षा की दृष्टि से आपस में दूरी बनाये रखना जरूरी लगा, तो लिख दिया हॉर्न ओके प्लीज। दूसरी थ्योरी कहती है कि पहले ट्रकों पर टाटा कंपनी का एकाधिकार था। उनके एक डिटर्जेंट साबुन 'ओके' का प्रचार करने के लिए ट्रकों पर हॉर्न प्लीज के बीच में बड़े अक्षरों में ओके लिखा गया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)