मेरी यादों में-जालंधर-भाग एक

मेरी यादों में-जालंधर-भाग एक

कमलेश भारतीय
आज मेरी यादों का कारवां जालंधर की ओर जा रहा है, जो पंजाब की सांस्कृतिक व साहित्यिक राजधानी कहा जा सकता है। नवांशहर से मात्र पचास-पचपन किलोमीटर दूर! यहाँ
मेरी बड़ी बुआ सत्या नीला महल मौहल्ले में रहती थीं और उन दिनों बस स्टैंड बिल्कुल रेलवे स्टेशन से कुछ दूरी पर ही धा। सत्या बुआ की शादी के बाद कई साल तक उनके कोई संतान नहीं हुई तो मेरी दादी साग व अन्य सौगातें देकर मुझे सत्या बुआ के यहाँ भेजा करती थीं । मेरी गर्मियों की दो महीने की छुट्टियां भी वहीं कटतीं ताकि बुआ को संतान न होने की कमी महसूस न हो। मेरे फूफा जी पुलिस में थे तो मौहल्ले के बच्चे मुझे सिपाही का बेटा कहकर बुलाते। पतंगबाजी का शौक़ मुझे भी था और फूफा जी को भी। वे छत पर चढ़कर बड़े बड़े पतंग उड़ाते जिन्हें छज्ज कहा जाता था । वे मुझे दूसरों के पतंग काटने के गुर भी सिखाते और छुट्टियां खत्म होने पर बहुत सारे पतंग और पक्की डोर तोहफे के तौर पर देते । 
नीला महल मौहल्ले के पास ही  एक छोटी सी लाईब्रेरी भी थी। दोपहर के समय मैं वहाँ समय बिताया करता। इसके कुछ आगे मशहूर माई हीरां गेट था। जहाँ ज्यादातर हिंदी व संस्कृत की किताबों के भारतीय संस्कृत भवन व दीपक पब्लिशर्स आज तक याद हैं । संस्कृत भवन के स्वामी तो हमारे शारदा मौहल्ले के दामाद थे। उनका बेटा राकेश मेरा दोस्त था और मैं संस्कृत भवन पर भी पुस्तकें उठा कर पढ़ता रहता था। आज जो फगवाड़ा में लवली यूनिवर्सिटी है, उनकी जालंधर छावनी में सचमुच मिठाइयों की बड़ी मशहूर दुकान थी । इस पर कभी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने चुटकी भी ली थी। अब लवली यूनिवर्सिटी खूब फल फूल चुकी है। 
मेरे फूफा जी का एक बार एक्सीडेंट हो गया और उनकी तीमारदारी में मुझे तीन माह सिविल अस्पताल में रहना पड़ा। वहाँ शाम के समय ईसा मसीह के अनुयायी अपना साहित्य बांटने आते जिनका इतना ही सार याद है कि एक अच्छा चरवाहा अपनी भेड़ों को अच्छी चारागाह में ले जाता है, ऐसे ही यीशु हमें अच्छी राह पर ले जाते हैं। अब समझता हूँ कि कैसे वे अपना साहित्य पढ़ाते थे ! 
दसवीं के बाद साहित्य में मेरी रूचि बढ़ गयी। संयुक्त पंजाब के सभी हिंदी, उर्दू व पंजाबी के अखबार यहीं से प्रकाशित होते थे और नये बस स्टैंड के पास ही आकाशवाणी का जालंधर केंद्र था। यहाँ मुझे पहली बार डाॅ चंद्रशेखर ने युववाणी में काव्य पाठ का अवसर दिलाया। इसके बाद जालंधर दूरदर्शन भी बना जहाँ मुझे रचना हिंदी कार्यक्रम के पहले एपीसोड में  ही जगदीश चंद्र वैद के सुझाव पर आमंत्रित किया गया। जालंधर आकाशवाणी व दूरदर्शन से ही अनेक पंजाबी गायक निकले जिनमें से गुरदास मान भी एक हैं। नववर्ष पर विशेष प्रोग्राम में गुरदास मान को अवसर मिला और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। काॅमेडी में विक्की ने भी नाम कमाया। नेत्र सिंह रावत, संतोष मिश्रा,रवि दीप, लखविंदर जौहल, पुनीत सहगल, के के रत्तू, मंगल ढिल्लों आदि कुछ नाम याद हैं। मंगल ढिल्लों न्यूज़ रीडर थे बाद में एक्टर बने और कुछ समय पहले ही उनका निधन हुआ। लखविंदर जौहल का लिश्कारा प्रोग्राम खूब लोकप्रिय रहा। पुनीत सहगल आजकल जालंधर दूरदर्शन के कार्यकारी प्रमुख हैं। संतोष मिश्रा कुछ समय हिसार दूरदर्शन के निदेशक भी रहे।  इनकी बेटी सुगंधा मिश्रा कपिल शर्मा के काॅमेडी शो के कुछ एपीसोड में भी आई। 
कभी आकाशवाणी व दूरदर्शन के बाहर कतारें लगी रहती थीं लेकिन अब वह बीते जमाने की बाते़ं हो गयीं। आकाशवाणी में एक बार लक्ष्मेंद्र चोपड़ा भी निदेशक रहे तो श्रीवर्धन कपिल भी। विश्व प्रकाश दीक्षित बटुक और सोहनसिंह मीशा प्रसिद्ध पंजाबी कवि और डाॅ रश्मि खुराना  हिंदी और देवेंद्र जौहल पंजाबी कार्यक्रम के प्रोड्यूसर रहे। हरभजन बटालवी भी याद आ रहे हैं। लक्ष्मेंद्र चोपड़ा आजकल सेवानिवृत्ति के बाद गुरुग्राम में रह रहे हैं। आकाशवाणी से ही माइक के आगे बोलना सीखा। 
वीर प्रताप अखबार में मेरी लघु कथा आज का रांझा को प्रथम स्थान मिला।  यहाँ मेरी सत्यानंद शाकिर,  इंद्र जोशी, दीदी, आचार्य संतोष से लेकर गुरमीत बेदी और सुनील प्रभाकर से भी मुलाकातें होती रहीं। सुनील प्रभाकर बाद में दैनिक ट्रिब्यून में सहयोगी बने और गुरमीत बेदी हिमाचल पब्लिक सर्विस रिलेशन से सेवानिवृत्त हुए। सुनील प्रभाकर भी सेवानिवृत्त  हो चुके हैं। गुरमीत बेदी ने पर्वत राग पत्रिका भी निकाली। उन दिनों वीर प्रताप और हिंदी मिलाप की तूती बोलती थी। हिंदी मिलाप में तो कभी प्रसिद्ध निदेशक रामानंद सागर व हिंदी के प्रसिद्ध लेखक रवींद्र कालिया भी उप संपादक रहे। दोनों अखबार बंद हो चुके हैं। सिर्फ पंजाब केसरी, दैनिक सवेरा, उत्तम हिन्दू और अजीत समाचारपत्र ही हिंदी में चल रहे हैं। हिंदी मिलाप का हैदराबाद संस्करण चल रहा है। अजीत समाचार के संपादन में सतनाम माणक व सिमर सदोष चर्चित हैं। सिमर सदोष वीर प्रताप, हिंदी मिलाप और आज कल अजीत में साहित्य संपादक के रूप में लंबी पारी खेल रहे हैं। उन्हें पंजाब की नयी पीढ़ी को व लघुकथा को आगे बढ़ाने का श्रेय जाता है पर वे हैंडल विद केयर इंसान हैं । बहुत भावुक व सरल। मैंने यह बात पिछले साल उनकी पंकस अकादमी के समारोह में कह दी जो उन्हें खूब पसंद आई लेकिन एक दूसरे साहित्कार को यह बात हजम नहीं हुई। छब्बीस साल से सिमर पंकस अकादमी चला रहे हैं। न जाने कितने साहित्यकारों को सम्मानित कर चुके हैं। बड़ी लम्बी सूची है जिनमें एक नाम मेरा भी शामिल है। जालंधर की साहित्यिक यात्रा का अगला भाग शीघ्र ही । इंतज़ार कीजिये।